विश्व
हिन्दी सम्मलेन की सुखद अनुभूति
डॉ०
कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
देश
में 32 वर्ष बाद आयोजित दसवें विश्व हिन्दी सम्मलेन, 2015
(10-12 सितम्बर को भोपाल, मध्य प्रदेश में आयोजित) में
सहभागिता का अवसर मिला. ‘रामधारी सिंह दिनकर सभागार’ में संपन्न उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने हिन्दी के विकास, उसके संवर्धन, अन्य भाषाओं से शब्दों की
स्वीकार्यता, डिजिटल दुनिया में हिन्दी के अधिकाधिक उपयोग आदि पर जोर दिया.
सम्मलेन
में दो दिनों तक ‘रोनाल्ड स्टुअर्ट मैकग्रेगर सभागार’, ‘अलेक्सई पेत्रोविच
वरान्निकोव सभागार’, ‘विद्यानिवास मिश्र सभागार’ और ‘कवि प्रदीप सभागार’ में
देश-विदेश के विभिन्न विद्वानों ने बारह विषयों-‘विदेश नीति में हिन्दी’,
‘प्रशासन में हिन्दी’, ‘विज्ञान क्षेत्र में हिन्दी’, ‘संचार एवं सूचना
प्रोद्योगिकी में हिन्दी’, ‘विधि तथा न्याय क्षेत्र में हिन्दी और भारतीय भाषाएँ’,
‘बाल साहित्य में हिन्दी’, ‘अन्य भाषा भाषी राज्यों में हिन्दी’, ‘हिन्दी
पत्रकारिता और संचार माध्यमों में भाषा की शुद्धता’, गिरमिटिया देशों में हिन्दी’,
विदेश में हिन्दी शिक्षण’, ‘विदेशियों के लिए भारत में हिन्दी अध्यापन की सुविधा’
और ‘देश और विदेश में प्रकाशन : समस्याएँ एवं समाधान’-पर अपने विचार रखे. वक्ताओं
के साथ-साथ श्रोताओं, प्रतिनिधियों की सक्रियता-टिप्पणियों ने सत्रों को सार्थक
बनाया. पूर्व सम्मेलनों के मुकाबले इस सम्मलेन में विभिन्न सत्रों में पढ़े गए
पत्रों, श्रोताओं की टिप्पणियों, प्रतिक्रियाओं आदि पर तीसरे दिन चर्चा होकर
अनुशंसाएँ प्रस्तुत की गईं.
विभिन्न
विषयों पर सत्रों में सहभागी बने विद्वानों, श्रोताओं के विमर्श पश्चात संघ लोक
सेवा आयोग की परीक्षाओं में हिन्दी भाषा होने, सीबीएसई में कक्षा नौ के बाद हिन्दी
को अनिवार्य रूप से लागू करने, चिकित्सकीय परीक्षाओं में हिन्दी लेखन की छूट,
राजभाषा लोकपाल की स्थापना, विधि एवं न्याय क्षेत्र में हिन्दी का मानक शब्दकोष
तैयार करने, पंचवर्षीय विधि शिक्षा में माध्यम हिन्दी हो, बाल साहित्य अकादमी की
स्थापना किये जाने, बाल-पत्रिकाओं के प्रकाशकों को प्रोत्साहित करने, हिन्दी उत्सव
का आयोजन किये जाने, हिन्दी के लिए काम कर रही प्रमुख संस्थाओं में समन्वय स्थापना,
पत्रकारों-उद्घोषकों आदि को हिन्दी भाषा का प्रशिक्षण, राष्ट्रीय भाषा आयोग का गठन
आदि सहित अनेक अनुशंसाएँ समापन सत्र में पटल पर रखी गईं. जिनको सरकारी स्तर पर
लागू करवाने के लिए समिति बनाने पर जर्नल वी० के० सिंह ने सहमति दी.
समापन
सत्र में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने हिन्दी की महत्ता स्पष्ट कर गूगल के आँकड़ों
द्वारा बताया कि इंटरनेट पर सर्वाधिक संख्या में सामग्री को हिन्दी में उपलब्ध
करवाया जा रहा है. देश-विदेश में हिन्दी में उत्कृष्ट कार्य करने हेतु ‘विश्व
हिन्दी सम्मान’ से सम्मानित होने वालों में अनूप भार्गव (अमेरिका), स्नेहा ठाकुर
(कनाडा), डॉ० हाईंस (स्वीडन), डॉ० किराताराहाशी (जापान), उषादेवी (दक्षिण
अफ्रीका), कमलाराय (त्रिनिडाड-टोबैको), डॉ० दैमन्तास (लिथवानिया), नीलम कुमारी
(फिजी), शारजिक वर्वे (बेल्जियम), अजामित बादवदल (मारीशस), गंगाधर सिंह (मारीशस),
दासनायक इंदिरा कुमारी (श्रीलंका), मुहम्मद इस्माईल (सऊदी अरब), सुरजन परोही
(सूरीनाम), कैलाशनाथ (यूके), उषा राजे सक्सेना (यूके) रहे. देश में हिन्दी विकास
हेतु प्रभाकर श्रोत्रिय, प्रभात कुमार भट्टाचार्य, एन० चंद्रशेखर नायडू, डॉ० मधु
धवन, माधुरी जगदीश, प्रो० अनंतराम त्रिपाठी, कुमारी अहेमकामो, डॉ० परमानन्द
पांचाल, डॉ० बागेश्वर सुन्दरम, प्रो० हरिराम मीणा, डॉ० व्यासमणि त्रिपाठी, डॉ०
सुरेश कुमार गौतम, डॉ० आदित्य चौधरी, डॉ० के०के० अग्रवाल, अन्नू कपूर, अरविन्द
कुमार, माता प्रसाद, आनंद मिश्र ‘अभय’ को सम्मानित किया गया.
ग्यारहवें
विश्व हिन्दी सम्मलेन को वर्ष 2018 में मारीशस
में आयोजित करने सम्बन्धी प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित किया गया. सम्मलेन में मध्य
प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा प्रदेश के मुख्यमंत्री, सचिव स्तर
के अधिकारी के हिन्दी में काम करने, सरकारी विज्ञापनों, अधिसूचनाओं आदि को हिन्दी
में जारी किये जाने की घोषणा हुई. उद्घाटन सत्र में सम्मलेन से सम्बंधित डाक टिकट
का लोकार्पण, सम्मलेन की स्मारिका, गगनांचल पत्रिका के विशेषांक और पुस्तक
‘प्रवासी साहित्य : जोहान्सवर्ग से आगे’ का विमोचन तथा समापन में राज्यपाल
केशरीनाथ त्रिपाठी के भाषणों के संकलन की पुस्तक सहित कुल तीन पुस्तकों का विमोचन हुआ.
सम्मलेन में ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, कनाडा, स्वीडन, अरब देश, अमेरिका, यू०के०,
हंगरी, थाईलैंड, नार्वे, चीन, जापान, बांग्लादेश, फिजी, युगांडा आदि के
प्रतिनिधियों ने उनके देश में हिन्दी की स्थिति को स्पष्ट किया. उनसे मिलकर उनके
हिन्दी-प्रेम को जानने, समझने, विदेशों में हिन्दी भाषा संवर्धन में हिन्दी
फिल्मों के सहायक होने का पता चला.
सम्मलेन
का आकर्षण ‘मुख्य प्रवेश द्वार’, ‘रामधारी सिंह दिनकर सभागार’, ‘हिन्दी की अमर
ज्योति’ भी रहे. विशाल अक्षरों में ‘हिन्दी’ का लिखा होना और ‘ह’ को मुख्य प्रवेशद्वार
बनाया जाना; ‘दिनकर सभागार’ की दीवार और द्वारों को पुस्तकों के चित्रों और
पुस्तकों द्वारा सजाया जाना अद्भुत रहा. कई नामी, बड़े साहित्यकारों का न होना
सम्मलेन में विवादों को जन्म देता है. प्रथम दृष्टया सम्मलेन में किसी हिन्दी भाषाविज्ञानी
का न होना तथा हिन्दी भाषा पर किसी सत्र का न होना भी अखरा. बहरहाल चंद कमियों को
ज्यादा तूल न दिया जाये तो दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मलेन विशेष अनुभूति तो करवाता ही
है; अपने देश को ऐसे वैश्विक आयोजनों का मेजबान होना गौरव महसूस कराता है; ऐसे
आयोजनों में सहभागिता करने का सुखद एहसास भी महसूस किया जा सकता है.
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उक्त रपट 'भव्य भास्कर' पत्रिका के अक्टूबर 2015 में प्रकाशित की गई है.
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