अंततः युद्ध में उतरा ईरान

पिछले वर्ष आतंकी संगठन हमास द्वारा इजरायल पर हमले के बाद इजरायल द्वारा दिखाए गए आक्रामक तेवरों से स्थितियों के असामान्य होने की आशंका बनी हुई थी. जिस तरह से इस्लामिक देश इजरायल के विरुद्ध मोर्चा खोले थे, उससे आशंका थी कि किसी दिन ईरान खुलकर इजरायल के विरुद्ध आ जायेगा. हमास द्वारा इजरायल पर हमला किये जाने के बाद जानकारों का मानना था कि भले ही इस हमले में ईरान का सीधा हाथ न हो किन्तु हमास के लड़ाकों को ट्रेनिंग, उन्हें हथियार देने में ईरान की प्रभावी भूमिका है. यद्यपि इजरायल की तरफ से खुलकर ईरान का नाम नहीं लिया गया तथापि ईरान और इजरायल की पुरानी रंजिश को देखते हुए इसमें संदेह नहीं था कि हमास के हमले में किसी न किसी रूप में ईरान जुड़ा है.

 

तत्कालीन स्थितियों-परिस्थितियों, इतिहास को देखते हुए ईरान द्वारा जिस तरह के कदम के उठाये जाने की आशंका थी, वह सच साबित हुई. दो दिन पहले ईरान द्वारा इजरायल पर तीन सौ से अधिक ड्रोन और मिसाइलों से हमला किया गया. जिनमें किलर ड्रोन से लेकर बैलिस्टिक मिसाइल और क्रूज मिसाइलें शामिल थीं. इजरायल ने दावा किया कि उसने ईरान के 99 प्रतिशत मिसाइल और ड्रोन मार गिराए हैं. इस मौके पर इजरायल के साथ अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस खड़े दिखाई दिए. अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान की कई मिसाइलों और ड्रोन को हवा में ही मार गिराया. ईरान द्वारा इजरायल पर यह सीधा हमला भले ही इजरायल-हमास युद्ध की स्थिति के बीच में किया गया हो किन्तु इन दो देशों के बीच आपसी कटुता की जड़ें काफी पुरानी हैं.

 



दरअसल, सन 1979 में ईरानी क्रांति होने से ईरान में अमेरिका से जुड़ा पहलवी राजवंश जड़ से समाप्त हो गया था. इसके बाद ईरान में अयातुल्ला खुमैनी की धार्मिक सत्ता आई. इस धार्मिक व्यवस्था के आने से ईरान और अमेरिका के रिश्तों में कड़वाहट तो शुरू हुई ही, इजरायल द्वारा ईरान के आखिरी सम्राट मोहम्मद रज़ा पहलवी का समर्थन करना भी ईरान-इजरायल के मध्य कटुता का कारण बना. चूँकि ईरान में तत्कालीन क्रांति इस्लाम के नाम पर ही हुई थी और ईरान भी अपनी इसी वैचारिकी के द्वारा सम्पूर्ण मुस्लिम समाज पर नेतृत्व करना चाह रहा था. इस नेतृत्व की चाह में ईरान के बीच अवरोधक के रूप में शिया-सुन्नी विवाद था. ऐसे में मुस्लिम देशों का नेतृत्व करने का मंसूबा सफल न होने देने पर ईरान ने स्वयं को इस्लामिक देशों का हमदर्द होने, उनका मददगार होने का रास्ता अपनाया. इसी के चलते उसने इजरायल का विरोध करते हुए फिलिस्तीन का समर्थन किया. यही कारण है कि विगत दो दशकों से अधिक समय से हमास और हिजबुल्लाह जैसे आतंकी संगठनों को ईरान की तरफ से सहायता मिलती रही है.

 

इसके बाद भी सवाल है कि आखिर ईरान द्वारा इस समय इजरायल पर हमला क्यों किया गया? इस हमले का शेष दुनिया पर क्या प्रभाव होगा? देखा जाये तो पिछले वर्ष अक्टूबर के बाद से अब तक इजरायल-हमास युद्ध में इजरायल ही एक कदम आगे रहा है. बीच में कई बार स्थितियाँ युद्ध-विराम जैसी भी बनीं. ऐसे में ईरान द्वारा खुद को मुस्लिम नेतृत्वकर्ता के रूप में दिखाने का कोई सीधा अवसर भी नहीं मिला. इजरायल-हमास संघर्ष में नवीनतम बदलाव पुनः संघर्ष-विराम के रूप में आने के समाचार आ रहे थे. संभव है कि ऐसा कोई कदम उठने के पहले ईरान द्वारा खुद को मुस्लिम पक्षधर दिखाने की कोशिश में इजरायल पर यह हमला किया गया हो. इसके अलावा सामुद्रिक क्षेत्र पर अपनी हनक बनाने की कोशिश भी एक कारण हो सकता है. असल में ईरान ने एक कार्गो जहाज को रोक रखा है, जिसमें भारतीय और रूसी सवार हैं. उसका मंतव्य ओमान और फारस की खाड़ी को जोड़ने वाले होर्मूज जलडमरूमध्य पर अपना नियंत्रण बनाना है. इस क्षेत्र से विश्व का एक तिहाई के आसपास प्राकृतिक तेल और प्राकृतिक गैस का गुजरना होता है. ऐसे में यह हमला सामुद्रिक मार्गों पर नियंत्रण करना भी हो सकता है.  

 

वैश्विक रूप में ईरान की सैन्य क्षमता सशक्त मानी जाती है. उसके द्वारा लम्बे समय से परमाणु कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं, जिनका विरोध इजरायल द्वारा लगातार होता रहा है. इस हमले के पीछे एक मकसद अपने परमाणु कार्यक्रमों को संचालित करते रहना भी हो सकता है. इसके साथ ही परमाणु कार्यक्रम मुद्दे पर वह अमेरिका को ईरान से न टकराने का सन्देश भी देना चाहता होगा. यदि इसके प्रभावों पर वैश्विक रूप से गौर करें तो अमेरिका अपने यहाँ होने वाले चुनावों में व्यस्त है, सो वह किसी युद्ध जैसी स्थिति में फँसना नहीं चाहेगा. रूस पहले से ही लम्बे समय से एक युद्ध को लड़ रहा है, उसके लिए एक और युद्ध सरल नहीं होगा. चीन अपने एशियाई वर्चस्व और आर्थिक कारण को लेकर शायद ही खुलकर सामने आये. जहाँ तक भारत की बात है तो उसके सम्बन्ध ईरान से ऐतिहासिक, सांस्कृतिक रहे हैं; इधर इजरायल भी बेहतर रणनीतिक मित्र के रूप में भारत के साथ बना हुआ है, ऐसे में भारत द्वारा खुलकर किसी एक का समर्थन या विरोध करना उचित नहीं है.

 

अब जबकि ईरान द्वारा सीधा हमला इजरायल पर किया जा चुका है; इजरायल द्वारा हमले को निष्प्रभावी भी किया जा चुका है; रूस और अमेरिका द्वारा अपनी-अपनी स्थिति को एकदम स्पष्ट कर दिया गया है; अन्य विकसित देशों द्वारा भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया गया है, तब इजरायल और ईरान को गम्भीरता से अपनी पुरानी दुश्मनी नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के वर्तमान का ध्यान रखना चाहिए. एक जरा सी लापरवाही सम्पूर्ण विश्व को विश्वयुद्ध की आग में झोंक देगी. अपनी-अपनी दुश्मनी, कटुता का बदला लेने के लिए भले ही छोटे-छोटे हमले होते रहे हों मगर कोई महाशक्ति भी विश्वयुद्ध जैसी विभीषिका आने का समर्थन नहीं करेगा. इस संवेदनशील बिन्दु पर ईरान और इजरायल को समझदारी का, इंसानियत का परिचय देने की आवश्यकता है.


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