‘49-ओ’ के प्रयोग से होने वाली परेशानी को निर्वाचन आयोग दूर करे

उरई विधानसभा का सर्वोदय इंटर कॉलेज मतदान केन्द्र, मतदान करने पहुँचे एक युवक ने सभी प्रत्याशियों को नकारने सम्बन्धी निर्वाचन नियमावली 1961 के नियम ‘49-का प्रयोग करना चाहा। पीठासीन अधिकारी द्वारा उसको इस नियम का प्रयोग करने से रोका गया; युवक द्वारा समझाये जाने पर बाहर तैनात सुरक्षा बल के जवान की मदद से जबरन मतदान मशीन का बटन दबवाया गया। इसकी पुनरावृत्ति उस युवक के भाई के साथ भी हुई, जब उसने भी अपना मतदान ‘49-के तहत करने की बात पीठासीन अधिकारी से कही।

एक अन्य युवक को महाकवि कालीदास इंटर कॉलेज में बने मतदान केन्द्र पर इस नियम का प्रयोग करने पर भय का, धमकी का सामना करना पड़ा। उस युवक को भी पीठासीन अधिकारी तथा उनके कहने पर वहाँ तैनात सुरक्षाबल के जवान द्वारा धमका कर मतदान करने को विवश किया गया। उस युवक द्वारा अपनी बात पर अडिग रहने तथा बिना मारपीट/सुरक्षाबल के भय के सेक्टर मजिस्ट्रेट से बात किये बिना मतदान न करने की बात कहते रहने का परिणाम यह हुआ कि लगभग एक घंटा बाद सेक्टर मजिस्ट्रेट के आने पर ही उस युवक को इस नियम के अन्तर्गत मतदान करने को मिला।

एक अन्य व्यक्ति ने जब मतदान के समय इस नियम का प्रयोग किया तो थोड़ी सी हीलहुज्जत के बाद पीठासीन अधिकारी ने उसको इस नियम का प्रयोग तो करने दिया किन्तु मतदान की फोटोग्राफी करने वाले फोटोग्राफर से उस मतदाता की फोटो खिंचवा ली। उक्त घटनाओं में इस तरह के कार्य पीठासीन अधिकारियों द्वारा किये गये जिससे मतदाताओं को भय का सामना करना पड़ा। इसके अलावा उन तमाम सारे व्यक्तियों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा जिन्होंने इस नियम ‘49-का प्रयोग करना चाहा अथवा किया।

स्वयं लेखक को और उसके सम्पर्क के अनेक मतदाताओं को फॉर्म 17-ए के नाम पर पहले टहलाने का प्रयास किया गया। लेखक के मतदान केन्द्र पर पीठासीन अधिकारी ने तो उठकर फॉर्म ‘17-खोजना भी शुरू कर दिया। बार-बार यह समझाने पर भी कि जिस रजिस्टर पर आप सभी मतदाताओं का विवरण दर्ज कर रहे हैं, वही 17-ए है, पीठासीन अधिकारी मानने को तैयार नहीं था। और तो और अपनी इस निरर्थक खोजबीन के दौरान उसका इस ओर भी मौखिक-शाब्दिक प्रयास बना रहा कि लेखक मतदान के लिए बटन दबाने को तैयार हो जाये। लगभग 7-8 मिनट की बिलावजह मेहनत के बाद पीठासीन अधिकारी ने इस नियम का प्रयोग लेखक को करने दिया। अन्य मतदान केन्द्रों पर भी इसी से मिलती-जुलती घटनाएँ देखने-सुनने में आईं।

इस तरह की रोकटोक, सुरक्षाबलों का दबाव, मतदाताओं को टहलाने की प्रक्रिया के बाद भी लगभग 45-50 लोगों ने उरई विधानसभा में नियम ‘49-का प्रयोग किया। यह और बात है कि स्थानीय मीडिया द्वारा, स्थानीय खुफिया विभाग द्वारा तथा अन्य छुटभैये नेताओं के बार-बार पूछताछ करने और इस सम्बन्ध में बात करने से अधिसंख्यक लोगों में अज्ञात भय सा दिख रहा है। स्वयं लेखक को मीडिया को तथा अन्य अज्ञात लोगों को अभी भी इस सम्बन्ध में जानकारी देनी पड़ रही है, कुछ फोन अज्ञात नाम से और कुछ फोन गुप्तचर विभाग के नाम पर भी आये। इसके अलावा उक्त नियम का प्रयोग करने वाले मतदाताओं को सार्वजनिक रूप से ‘‘कहो 49-ओ वाले’’ कहकर भी पुकारा जाने लगा है। कहने का आशय यह है कि प्रशासनिक अमले द्वारा और विभिन्न संस्थाओं द्वारा मतदाता जागरूकता का कार्य किया गया किन्तु इस नियम की ओर से आम जनता को भी अनभिज्ञ रखा गया और साथ ही निर्वाचन कर्मियों की जागरूकता के लिए भी किसी के द्वारा प्रयास नहीं किये गये।

प्रशासन और तमाम संगठनों द्वारा अधिक से अधिक मतदान को प्रेरित किया गया पर क्या मजबूत लोकतन्त्र के लिए सिर्फ और सिर्फ अधिक मतदान करना ही महत्वपूर्ण है? वर्तमान हालात में जबकि लोगों में भ्रष्टाचार के विरुद्ध, भ्रष्ठ राजनेताओं के प्रति, भ्रष्ट तन्त्र के प्रति आक्रोश है और वह इस आक्रोश को मतदान में प्रकट करना चाहता हो तो क्या अधिक से अधिक मतदान को प्रेरित करने वालों का दायित्व नहीं बनता था कि वे निर्वाचन कर्मियों को भी जागरूक करते कि इस नियम का प्रयोग करने वाले को हतोत्साहित न किया जाय; उसका सहयोग किया जाये; उसको इस नियम के तहत मतदान करने दिया जाये? किसी भी मतदाता का सिर्फ और सिर्फ मतदान करना ही अधिकार नहीं है। उसके लिए सही प्रत्याशी का चयन करना भी उसका अधिकार है। इसी तरह उसका यह अधिकारपूर्ण कदम बनता है कि वह किसी भी प्रत्याशी को मतदान न करे और उन सभी को नकार दे। समस्त प्रत्याशियों को नकारने सम्बन्धी अधिकार उसी निर्वाचन आयोग द्वारा दिया गया है जिसने किसी एक प्रत्याशी के समर्थन में मतदान करने का अधिकार मतदाता को दिया है। ऐसे में किसी भी निर्वाचन अधिकारी/कर्मी द्वारा किसी भी मतदाता को इस नियम ‘49-का प्रयोग करने से रोकना सीधे-सीधे आयोग के नियमों का उल्लंघन है।

इसके अतिरिक्त आयोग की प्राथमिकता में मतदाता के मत को गोपनीयता प्रदान करना और मतदान हेतु भयमुक्त वातावरण प्रदान करना। ऊपर दर्शायी गई स्थितियों पर विचार करें तो नियम ‘49-का प्रयोग करने वाले किसी भी मतदाता की मत सम्बन्धी गोपनीयता तो रही ही नहीं और तो और बहुतों को तो भययुक्त वातावरण में मतदान करने को विवश होना पड़ा। मतदान केन्द्र पर उपस्थित रजिस्टर (जिसको ही फॉर्म 17-ए के नाम से जाना जाता है) को उठाकर देख लिया जाये तो किसी और मतदाता के मत का पता चले अथवा न चले किन्तु ‘49-नियम का प्रयोग करने वाले मतदाता के बारे में तुरन्त पता चल जायेगा कि फलां मतदाता ने सभी प्रत्याशियों को नकारने सम्बन्धी अधिकार का प्रयोग किया है। इसका कारण है कि उस रजिस्टर में सम्बन्धित मतदाता के कॉलम में लिख दिया जाता है कि मतदान करने से मना किया। इसके अतिरिक्त पीठासीन अधिकारी सहित समस्त मतदानकर्मियों, विभिन्न दलों के एजेंटों, सुरक्षाकर्मियों, स्थानीय मतदाताओं को भी ज्ञात हो जाता है कि फलां व्यक्ति ने किसी को भी मतदान न करके सभी को नकारने का कार्य किया है। ऐसे में मतदाता के मत की गोपनीयता कहाँ रही?

आयोग का कार्य सिर्फ और सिर्फ मतदान करवा देना ही नहीं है; उसकी सफलता सिर्फ और सिर्फ बिना हिंसा के मतदान करवा देना ही नहीं है; आयोग की ओर से अधिक मतदान प्रतिशत को प्राप्त कर लेना ही उसकी सफलता नहीं है आयोग का यह भी कर्तव्य बनता है कि वह मतदाताओं की सुरक्षा को, उनकी सामाजिक प्रस्थिति को, मत की गोपनीयता को बनाये रखे। इसके लिए भविष्य के निर्वाचन में आयोग को उक्त प्रकार की तमाम सारी घटनाओं को संज्ञान में लेते हुए ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे मतदाता के मत की गोपनीयता बनी रहे और उसे भयमुक्त वातावरण मतदान हेतु प्राप्त हो सके। समाधान के रूप में देखा जाये तो ऐसा सिर्फ और सिर्फ मतदान मशीन में नकारने के विकल्प का बटन बनाकर ही किया जा सकेगा। भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में हुए तमाम सारे परिवर्तनों के बाद यहाँ की निर्वाचन प्रणाली और यहाँ के मतदाता इस परिवर्तन की राह ताक रहे हैं।

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