राजनैतिक दलों के लिए भी बने निर्वाचन नियमावली

विगत कई वर्षों के चुनावों के बाद ऐसा पहली बार लगा है कि देश का मतदाता अब बदलाव की चाह में मतदान करने घरों से बाहर निकल रहा है। लगभग सुसुप्तावस्था में जा चुका मतदाता पिछले वर्ष अन्ना आन्दोलन के बाद से यह एहसास कर चुका है कि देश में भ्रष्टाचार के विरोध में जनान्दोलन खड़ा किया जा सकता है। बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश होने से और नामी-गिरामी लोगों के जेल जाने के कदम से उसे यह आस बँधी है कि इस देश में इन रसूखदारों पर भी कार्यवाही सम्भव है। इससे जागरूकता देखने को मिली और इसी जागरूकता में वृद्धि का कार्य आयोग की कार्यप्रणाली ने भी किया।

आयोग की सक्रियता और सख्ती से इस बार के चुनावों में सुदूर क्षेत्रों के आम मतदाताओं के पास तक मतदाता पर्ची पहुँची है। किसी भी मतदाता को अब मतदान केन्द्र के बाहर किसी भी दल के लगाये तम्बुओं के इर्द-गिर्द नहीं डोलना पड़ रहा है। जो किसी भी रूप में अपना पहचान-पत्र बनवा नहीं सके अथवा आयोग द्वारा सुझाये गये विकल्पों में से भी कोई पहचान का विकल्प उनके पास नहीं है, ऐसे मतदाताओं के पास मतदाता-पर्ची पहुँचने से उनकी पहचान का संकट समाप्त हुआ और उनके अन्दर भी मतदान करने की इच्छा जाग्रत हुई। इसके अलावा सुरक्षाबलों के कड़े बन्दोबस्त में भी कमजोर और डरा-सहमा मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग खुलकर करने में समर्थ हुआ।

आयोग के इन कदमों से मतदाताओं को बहुत हद तक राहत मिली है। इसके बाद भी बहुत से आमूलचूल परिवर्तनों की सम्भावना अभी भी इस निर्वाचन प्रणाली में दिखाई देती है। मतदाता अपने अधिकार के प्रति तो जागरूक हुआ है, उसे मताधिकार की सहजता भी प्राप्त हुई है किन्तु वह अभी भी राजनीतिक दलों की और राजनीतिज्ञों की कारगुजारी से परेशान है। देखा जाये तो आयोग को बदलाव का अगला चरण इन्हीं को ध्यान में रखकर पूरा करना चाहिए।

लगभग सभी स्थानों पर देखने में आता है एक व्यक्ति टिकट की प्रत्याशा में राजनैतिक दलों के चक्कर लगाता रहता है। एक दल से दूसरे की ओर, दूसरे से तीसरे की ओर उसकी दौड़-भाग बनी ही रहती है। इसके अलावा देखने में यह भी आया है कि लगभग सभी राजनैतिक दलों की ओर से तमाम सारे चुनावों में एक ही व्यक्ति अथवा एक ही परिवार का बोलबाला बना रहता है। प्रत्याशी के जीतने अथवा हारने को लेकर चुनाव लड़ने की संख्या कितनी भी पहुँच जाये पर उनका चुनाव लड़ना बन्द नहीं होता है। ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग को चाहिए कि वह किसी भी व्यक्ति के चुनाव लड़ने के अवसरों पर रोक लगाये। किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह जीते अथवा हारे, सिर्फ और सिर्फ दो बार चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाये। इससे अन्य दूसरे उत्साही लोगों को चुनावों में मौका मिल सकेगा।

दलबदल कानून हमारे यहाँ बना है और उसके सुखद-दुखद परिणाम सामने दिखाई देते हैं किन्तु इसके बाद भी राजनीतिज्ञों का चुनावों के ठीक पहले दलों की यात्रा करने का कार्य पूरे जोरशोर से शुरू हो जाता है। इस यात्रा करने का उसका मकसद केवल टिकट पा लेना रहता है। चुनाव आयोग की ओर से भी इस पर अभी तक किसी तरह का अंकुश नहीं लगाया जा सका है। आयोग को इस तरह की स्वार्थपरक राजनीति पर रोक लगाने के लिए पहल करनी चाहिए। उसके द्वारा सभी राजनैतिक दलों के लिए प्रत्याशी चयन सम्बन्धी किसी प्रकार की नियमावली बनाये जाने की आवश्यकता है जिसके आधार पर एक निश्चित समयावधि में किसी राजनैतिक दल की सदस्यता पूरी कर चुका व्यक्ति ही उस सम्बन्धित दल से टिकट का हकदार होगा। इस तरह के कदम से उन मौकापरस्त लोगों पर रोक लगेगी जो जोड़तोड़ की राजनीति से मंत्री बन जाते हैं, सरकार भले ही किसी भी राजनैतिक दल की बनी हो।

चुनावी तन्त्र में आये दिन जिस तरह से बदलाव देखने को मिल रहे हैं और साथ ही आम जनमानस की ओर से इन परिवर्तनों को सहज स्वीकार्यता प्राप्त हो रही है वह दर्शाता है कि अब मतदाता भी स्वच्छ और सुखद लोकतन्त्र की स्थापना की चाह रखते हैं। ऐसे में यदि निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिज्ञों की मौकापरस्ती, स्वार्थपरकता, परिवारवाद आदि पर अंकुश लगाने की दिशा में प्रयास किया जायेगा तो उसे अवश्य ही आम जनता के द्वारा सहजता से स्वीकार किया जायेगा। इस दिशा में कार्य करने से आयोग को भी जनमानस का भरपूर समर्थन प्राप्त होने की सम्भावना है।

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