असफल होने पर याद आई जनता की

अन्ना की दिसम्बर क्रान्ति को क्रान्तिकारी सफलता न मिलने के बाद की हताशा जैसी स्थिति कहें या फिर सर्दी का प्रभाव कि अन्ना हजारे को चिकित्सालय में भर्ती होना पड़ा। उनके पाँच राज्यों में कांग्रेस विरोध का कार्यक्रम भी स्थगित करना पड़ा। अन्ना की बीमार स्थिति के बाद अन्ना टीम अपने आपको कहीं न कहीं अधूरा और कमजोर समझ रही है और इसी कारण से उसने अकेले पाँच राज्यों में प्रचार करने की हिम्मत नहीं जुटाई। यह अन्ना टीम का अकेलापन कहा जाये या फिर दिसम्बर अनशन का असफल रहना कि अब उसे भी नेताओं की तरह से जनता की याद आ गई है। अगस्त अनशन के बाद अन्ना टीम और विभिन्न राज्यों में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ता स्वयंभू मठाधीशों की तरह से व्यवहार करने लगे थे। लेखक स्वयं इस मठाधीशी से पीड़ित रहा है।



अन्ना टीम को अभी आगे के कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाने से बेहतर है कि पहले वह इस बात को देखे और विचारे कि देशव्यापी समर्थन के बाद भी दिसम्बर अनशन का असफल क्यों हुआ। इस सवाल का जबाव सम्भवतः अन्ना टीम के पास भी नहीं होगा जबकि सदन में बिल पर चर्चा चल रही थी ऐसे में अनशन करने की क्या आवश्यकता पड़ गई थी और वो भी निश्चित समयावधि के लिए? सरकार भी इस बात को जानती थी और जनता भी कि सदन में लोकपाल बिल का हाल कुछ भी हो, अन्ना का अनशन तीन दिनों में समाप्त हो जायेगा। इसके अलावा मंच के ऊपर से मरने की चिन्ता न करने का दम भरने वाले अन्ना और उनकी टीम ने यहाँ अपना अनशन दूसरे दिन ही समाप्त कर दिया और पूर्वघोषित जेल भरो आन्दोलन भी स्थगित कर दिया। इसे देश की पढ़ी-लिखी जनता ने और अपना काम-काज छोड़कर अन्ना के अनशन से तन्मयता के साथ जुड़े लोगों ने इसे अपने साथ धोखा समझा। ऐसी स्थिति में जनता को अन्ना टीम और सदन में चर्चा करते राजनीतिज्ञों में कोई विशेष अन्तर नहीं दिखाई दिया। उसने अपने आपको ठगा सा महसूस किया।

बहरहाल, अब विषय यह नहीं कि क्या हुआ, क्या होना चाहिए था। अन्ना टीम ने, केजरीवाल ने यदि फिर से जनता की ओर अपने हाथ फैलाये हैं तो जनता को भी इस पर ध्यान देना चाहिए। इसके बाद भी अन्ना टीम को यह विश्वास जनता को देना पड़ेगा कि वह अब जनता के सुझावों पर गौर ही नहीं करेगी बल्कि उनको अमल में लायेगी। अन्ना और अन्ना टीम को यह स्वीकारना पड़ेगा कि देश में सिविल सोसायटी के नाम पर सिर्फ पाँच लोग ही नहीं हैं और कोर कमेटी के नाम पर चन्द लोगों की जमावड़ा कर लेना ही दीर्घकालिक सफलता नहीं दिलवा सकता है। जनता के सुझावों के साथ-साथ अन्ना टीम को अपनी गलतियों की ओर भी देखना होगा और विचार करना होगा कि देशव्यापी जनसमर्थन के बाद ऐसा क्या हुआ कि एक साल के पूरा होने से बहुत पहले ही अन्ना टीम को फिर जनता के बीच समर्थन के लिए जाना पड़ गया। किसी एक धर्म-मजहब के पीछे समर्थन के लिए घूमने से बेहतर है कि अन्ना टीम जनता के आगे-पीछे घूमे।

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चित्र गूगल छवियों से साभार

Comments

  1. kash aaP kuch soch ke kuch kayde ka likhe hote !

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  2. अनुराग जी, काश हम सोच ही पाते तो क्या बात थी..

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