अन्ना आन्दोलन अब भटकाव की राह पर

अन्ना अनशन भाग-3 को वैसी सफलता नहीं मिली जैसी सफलता की कल्पना अन्ना और उनकी टीम ने की थी। मुम्बई में भीड़ का जुटना कम ही रहा साथ ही देश के अन्य भागों से भी वह उत्साह देखने को नहीं मिला जो पूर्व के दो आन्दोलनों में दिखा। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा लोकसभा में लोकपाल बिल को पास करवा लेना और मुम्बई में अन्ना के स्वास्थ्य ने भी अन्ना को पीछे हटने का एक अवसर दे दिया। यद्यपि इस बार का अनशन सिर्फ और सिर्फ तीन दिन के लिए ही था और उसके बाद जेल भरो आन्दोलन की तैयारी थी किन्तु अनशन को दो दिन में ही समाप्त करना पड़ा और जेल भरो आन्दोलन को रद्द करना पड़ा।

जैसी कि विभिन्न जगहों से समाचार मिल रहे थे, लोगों से बातचीत के माध्यम से पता चल रहा था उससे स्पष्ट था कि जेल भरो आन्दोलन की तैयारी तो है पर सम्भवतः उस जुनून के साथ नहीं जो अन्ना आन्दोलन के भाग-2 में दिखा था। इसको लेकर अन्तिम समय तक भले ही अन्ना टीम में संशय रहा हो पर कल अवश्य ही यह स्पष्ट हो गया होगा कि इस आन्दोलन की गति क्या होने वाली है। यदि भीड़ की दृष्टि से और आन्दोलन को बीच में ही छोड़ देने की स्थिति से देखा जाये तो कुछ बिन्दु ऐसे हैं जिनको टीम अन्ना को और उनका साथ देते जुनूनी समर्थकों को भी समझना होगा।

देश के लोग भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं और इससे छुटकारा भी चाहते हैं। इस कारण से अन्ना आन्दोलन को अपने दोनों चरणों में सफलता भी मिली, भीड़ भी मिली। लेकिन कहा भी गया है कि अति हर चीज की बुरी होती है और अन्ना टीम इसी अतिवादिता का शिकार हो गई है। उसने जनभावना का उस समय तक तो ख्याल रखा जिस समय उसे जनता की आवश्यकता थी किन्तु जब उसे लगा कि अब देश की जनता अन्ना और अन्ना टीम की एक आवाज पर जुट जाती है तो उसने जनभावना को दरकिनार करना शुरू कर दिया। यह समझने की आवश्यकता है कि दबाव समूह की नीति एक समय विशेष पर ही प्रभावी होती है किन्तु अन्ना टीम ने इस नीति को अपना प्रमुख कदम ही बना लिया है। सरकार भी इस बात को प्रचारित-प्रसारित करने में सफल रही कि अन्ना और उनकी टीम बेबुनियाद रूप से सरकार पर दबाव बना रही है।

अन्ना अनशन के और जेल भरो आन्दोलन के बीच में समाप्त होने के कोई भी कारण हों पर यह तो स्पष्ट हो गया है कि अब इस विषय पर फिर से नीति बनाने की आवश्यकता है। सरकार ने अपना दांव तो खेल दिया किन्तु इस बार टीम अन्ना उसका जबाव देने में असफल ही रही है। अब अन्ना को अपने आपको चुनाव में प्रचार के लिए उतारने की नीति पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि इस देश की जनता हताशा और निराशा भरे माहौल में विश्वास करने की स्थिति में नहीं होती है। जिस तरह से देशव्यापी समर्थन अन्ना को मिल रहा था और उसके साथ-साथ अन्ना के सहयोगी जिस तरह से उनका साथ छोड़कर जा रहे थे, वहीं दूसरी ओर अन्ना टीम पर लगातार होते कागजी तथा शारीरिक हमलों ने भी इस समर्थन में सेंध लगाने जैसे हालात खड़े कर दिये।

फिलहाल लोकपाल बिल अभी लोकसभा और राज्यसभा के बीच घूमने की स्थिति में है पर यह तो स्पष्ट हो गया है कि जिस तरह से सरकार ने इस बार अन्ना अनशन से बिना घबराये अपने मन का बिल लोकसभा में पास करके अपनी जिद, अपनी अहंकारी हठ को भी स्पष्ट कर दिया। ऐसे हालत में अन्ना और अन्ना टीम को फिर से होमवर्क करने की आवश्यकता है। कुछ लोगों के हाथों में खेल रही नीति को जन-जन तक ले जाने की आवश्यकता है। स्वभाव और कार्यशैली में दिख रही अहम की प्रवृत्ति को छोड़ने की आवश्यकता है। आन्दोलन से जुड़े आम लोगों को और उनके विचारों को भी प्रमुखता देने जैसे कदमों को उठाने की आवश्यकता है। यदि अन्ना और अन्ना टीम ऐसा नहीं कर पाती है तो सम्भवतः आने वाले दिनों में यह लड़ाई अपना स्वरूप खो देगी। कहीं ऐसा न हो कि अन्ना और उनकी टीम सिर्फ और सिर्फ अहंकार, अनशन तथा चुनावों में कांग्रेस विरोधी प्रचार के रूप में जानी जाने लगे।

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चित्र गूगल छवियों से साभार

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