भारतीय राजनीति इस समय एक विशेष प्रकार के दौर से निकल रही है, जहां नेताओं को अपने आपको सही साबित करने की कोशिश करनी पड़ रही है वहीं दूसरी ओर व्यक्ति विशेष पर सम्पूर्ण गतिविधियां आकर टिक सी गई हैं। व्यक्ति विशेष में किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं वरन् कई लोगों को देखा जा सकता है, जिनके आसपास हमारा राजनैतिक परिदृश्य घूमता दिख रहा है साथ ही मीडिया भी उसी के आभामण्डल का निर्माण करने में जुटा हुआ है। वर्तमान में ऐसे कई सारे व्यक्तियों में राहुल गांधी को बहुत ही आसानी से देखा जा सकता है। कोई भी घटनाचक्र हो किसी न किसी रूप में मीडिया के लोगों और कांग्रेस के लोगों के साथ-साथ अन्य दूसरे दल और व्यक्ति भी राहुल के इर्द-गिर्द घूमते से दिखाई पड़ने लगते हैं।
इसको आसानी से इस बात से समझा जा सकता है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री भी गाहेबगाहे राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की चर्चा कर लेते हैं। पार्टी के अघोषित प्रवक्ता के रूप में कार्य कर रहे दिग्विजय सिंह भी आये दिन या कहें कि नियमित रूप से राहुल-पाठ करते दिखाई देते हैं। राहुल गांधी की यात्रा हो, किसी राज्य का, जिले का भ्रमण हो, किसी चुनावी रैली अथवा किसी सामान्य से कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति हो बिना किसी देरी के सिंह साहब अपने मुखारविन्द से उनका बखान करना शुरू कर देते हैं। कांग्रेसजनों का राहुल गांधी का प्रधानमंत्री पद के लिए प्रचार-प्रसार करना कहीं न कहीं उनकी स्वामिभक्ति की निशानी हो सकती है किन्तु यदि केन्द्रीय सरकार के वरिष्ठ मंत्री अथवा स्वयं प्रधानमंत्री इसको प्रसारित-प्रचारित करें तो बात आसानी से गले के नीचे नहीं उतरती है। इन सबको एक दृष्टि से गलत भी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि यह पार्टी की अपनी आन्तरिक नीति हो सकती है।
यह गलत तब लगता है जब दूसरे दल के लोग अथवा स्वयं को सिविल सोसायटी के रूप में प्रसारित करने वाले भी राहुल गांधी को सही अथवा गलत रूप में प्रसारित-प्रचारित करना शुरू कर देते हैं। उत्तर प्रदेश को अपने अधिकार-क्षेत्र में मानने वाले दलों सपा और बसपा की स्थिति तो यह है कि यदि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश की ओर देख भी लेते हैं तो इन दोनों दलों के मुखियाओं के अलावा इनके प्रतिनिधियों तक में हलचल मच जाती है। राजनैतिक दलों की इस हालत को आसानी से समझा जा सकता है क्योंकि किसी को भी सत्ता प्राप्ति की राह में कोई भी रोड़ा पसंद नहीं होता है किन्तु यदि देश में क्रान्ति का पर्याय बनकर उभरे अन्ना हजारे राहुल गांधी को निशाना बनाकर कोई बयानबाजी करते हैं तो समझ में नहीं आता है कि इसके पीछे क्या समझा जाये?
सम्पूर्ण परिदृश्य में अन्ना और राहुल को खड़ा करें तो राहुल गांधी की तस्वीर कहीं बहुत छोटी और अपरिपक्व दिखाई देती है। किसी भी क्षेत्र को लें-परिवार इसका अपवाद हो सकता है-तो राहुल गांधी अन्ना हजारे के पासंग भी नहीं ठहरते हैं, इस कारण से अन्ना का राहुल को लेकर बयान देना और इस प्रकार का बयान देना कि उनके इशारे पर ही सदन में स्वीकारने के बाद भी तीन मांगों को ड्राफ्टिंग कमेटी ने नहीं माना। भले ही अन्ना के कथन में शतांश सत्यता भी हो किन्तु उनके व्यक्तित्व का प्रभावकारी स्वरूप उन्हें इस तरह के बयान की अनुमति नहीं देता है। आखिर राहुल गांधी हैं क्या? एक पार्टी के महासचिव, एक सांसद, एक उच्च परिवार के सदस्य, पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे और पोते...इसके अलावा उनकी कौन सी उपलब्धि उनको राहुल गांधी से अलग दूसरे प्रकार का राहुल बनाती है?
अन्ना हजारे और उनकी टीम के अलावा देश के लाखों-लाख लोग इस कारण उनके साथ नहीं हैं कि वे किसी दल विशेष को चुनाव में हराने का कार्य करते हैं, किसी नेता विशेष के बयानों पर अपनी तल्ख टिप्पणी देते हैं, संसद को अपने अनशन से झुकाते से दिखते हैं वरन देश का जागरूक वर्ग उनके साथ इसलिए खड़ा हुआ है कि वे एक सार्थक विषय को लेकर चले हैं, उनके द्वारा एक समस्या का निदान खोजे जाने का रास्ता बनता दिखा है। ऐसी स्थिति में जबकि सरकार पूरी तरह से अन्ना आन्दोलन को समाप्त सा करना चाह रही है, और इसका उदाहरण इससे मिलता है कि केन्द्रीय सरकार ने आनन-फानन सदन में ज्यूडिशियल एकाउंटिबिलिटी बिल, व्हिसिल ब्लोअर बिल, सिटीजन चार्टर बिल, मनी लांड्रिंग बिल को पास कर दिया। ऐसे में अन्ना का अन्ना होना एक मायने रखता है जिसे वे एक सांसद पर ऐसी टिप्पणी करके जिसके पीछे कोई ठोस आधार नहीं दिखता है, कम सा करते दिखते हैं।
इसको देखकर यह तो नहीं कहा जा सकता है कि अन्ना हजारे किसी अपरिपक्वता के शिकार हैं, लोकप्रियता को संभाल नहीं पा रहे हैं अथवा राहुल के आभामंडल से ग्रसित हैं इसके पीछे कहीं न कहीं वह हताशा सी है जो सरकार के अड़ियल-टालमटोल वाले रवैये से उपजता सा दिखता है। अन्ना हजारे और उनकी टीम को कहीं न कहीं इस बात की आशंका तो थी कि सरकार शीत-सत्र में जनलोकपाल बिल पर अपनी राय स्पष्ट रूप से नहीं रखेगी किन्तु वे कदापि इस बात को मानने को तैयार नहीं रहे होंगे कि ड्राफ्टिंग कमेटी द्वारा उन तीनों मांगों को सिरे से नकार दिया जायेगा जिन्हें सदन ने आपसी सहमति के बाद स्वीकार की थीं। इसी वजह से सदन में बिल आने के बाद हतप्रभ रहे अन्ना के पास आक्रोश में सिर्फ और सिर्फ राहुल ही निशाने पर रहे। अन्ना द्वारा राहुल गांधी पर इस प्रकार का बयान देना किसी न किसी रूप में कांग्रेस को एकजुट करने का कार्य सा करता है वहीं आन्दोलन के दिशा बदलाव के भी संकेत देता है। अन्ना को और उनकी टीम को आन्दोलन के इस नाजुक मोड़ पर यह ध्यान में रखना होगा कि उनका एक गलत कदम आन्दोलन को भटका सकता क्योंकि उनका किसी एक सांसद पर आरोप लगाने जैसा अतिसंकुचित मन्तव्य नहीं है वरन् उनका उद्देश्य व्यापक है, सम्पूर्ण देश के लिए है, सम्पूर्ण व्यवस्था-सुधार के लिए है।
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