विभीषिका रोकने को नागरिक अपना दायित्व भी समझें

पश्चिम बंगाल में अभी चिकित्सालय की आग की गरमी और शोक की लहर थमी भी नहीं थी कि जहरीली शराब ने अपने जहरीले रूप से एक सैकड़ा से अधिक लोगों को निगल लिया है। बहुत से लोग अभी भी जीवन-मृत्यु से जूझ रहे हैं। मीडिया की जागरूकता इस मामले में इस रूप में सामने आई कि उसने सारे घटनाक्रम का ठीकरा प्रशासन-शासन के सिर पर फोड़ना शुरू कर दिया है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि प्रशासन की, शासन की जिम्मेवारी अपने नागरिकों के प्रति अधिक होती है और उसे प्रत्येक स्थिति में अपने दायित्वों का पालन करना चाहिए।

इन्हीं दायित्वों के पीछे से एक बात और भी उठती है कि क्या सिर्फ और सिर्फ शासन-प्रशासन की ही सम्पूर्ण जिम्मेवारी बनती है किसी भी अच्छे-बुरे के प्रति? क्या नागरिकों का कोई भी दायित्व इस ओर नहीं बनता है कि वे भी जागरूक होकर प्रशासन और शासन को सहयोग प्रदान करें? जहरीली शराब पीकर मरने वालों की घटना कोई पश्चिम बंगाल की अकेली घटना नहीं है, देश के विविध भागों से आये दिन इस तरह की खबरें मिलती रहती हैं। इन घटनाओं और नागरिकों की जिम्मेवारी के संदर्भ में विचार किया जाये तो क्या जहरीली शराब को पीने वाले लोगों को ज्ञात नहीं रहा होगा कि वे जिस वस्तु का सेवन करने जा रहे हैं वह किसी न किसी रूप में खतरनाक तो होती ही है। यह कहना नितान्त गलत और भ्रामकता को फैलाना होगा कि जिन लोगों ने इस शराब का सेवन किया है वे यह भी नहीं जानते होंगे कि यह खतरनाक हो सकती है।

खाद्यपदार्थों को लेकर संशय की स्थिति उस समय बनती है जबकि किसी अच्छे खाद्यपदार्थ का सेवन किया जाये और किसी भी गलती से उसमें जहरीला पदार्थ का समावेश हो गया हो किन्तु यहां तो सीधे-सीधे भट्टियों की बनी शराब का मामला था जिसे किसी भी रूप में अच्छा नहीं माना जा सकता है। जहां तक शराब का विषय है तो इस बारे में स्वयं सरकारें भी दुविधा की स्थिति में रहती हैं कि उन्हें किस प्रकार का कदम उठाना है? इसी देश में जहां सरकार ही शराब को बनाने और बेचने का लाइसेंस देने का कार्य करती है वहीं सरकार ही इसके प्रतिबंध का कार्य भी करती है। कहीं कहीं तो शराब पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा हुआ है। ऐसे में शराब के शौकीन लोगों की नब्ज को टटोल कर इसका लाभ उठाने वाले गैर-कानूनी रूप से शराब का उत्पादन करने लगते हैं।

यह माना जा सकता है कि शराब के इस प्रकार के उत्पादन को रोकना सरकार का कार्य है पर क्या नागरिकों का इस ओर कोई कर्तव्य नहीं है? सरकार के प्रयासों को सफलता किसी भी रूप में बिना नागरिकों के सहयोग के नहीं मिलती है। होना यह चाहिए कि बजाय इस प्रकार की शराब के व्यावसायियों को लाभ देने के, इनका सहयोग करने के इनको पकड़वाने का कार्य नागरिकों द्वारा करना चाहिए। वर्तमान में शराब के प्रति लोगों का मोह देखकर तो ऐसा होना असम्भव सा लगता है तो फिर स्पष्ट है कि यह जहरीला दानव अपना सिर उठाता ही रहेगा। पश्चिम बंगाल में मृत्यु के आगोश में गये लोगों की पृष्ठभूमि को देखा जाये तो स्पष्ट रूप से समझ में आ रहा है कि मरने वालों में अधिसंख्यक मजदूर, रिक्शाचालक, गरीब आदमी है। अब मीडिया द्वारा इस बात को हंगामी रूप से दर्शाया जा रहा है कि सरकार द्वारा 2 लाख रुपये के मुआवजे से क्या होगा। सत्य है कि इंसान की जान की कीमत नहीं लगाई जा सकती है किन्तु क्या इसको निष्पक्ष रूप से विचारणीय समझा गया है कि इन मरने वालों ने एक पल को भी इस जहरीली शराब के विरुद्ध किसी तरह की शिकायत प्रशासन को, शासन को करने की कोशिश की थी?

देखा जाये तो हम आये दिन मानवाधिकार की बात करके सरकार को कोसना शुरू कर देते हैं किन्तु अपने कर्तव्यों को, दायित्वों को भूल जाते हैं। यदि हम मानवाधिकार के प्रति इतने ही सजग हैं तो क्या हमारा दायित्व यह नहीं बनता था कि हम इस तरह के गैर-कानूनी कार्य कर रहे लोगों की शिकायत करते? जो मीडिया आज चिल्लाते-चिल्लाते नहीं थक रहा है क्या उसने एक बार भी इस तरह से जहरीली शराब बनाने वालों के विरुद्ध आन्दोलन करने का काम किया था? आज जो लोग अपने किसी परिजन की मौत पर विलाप कर रहे हैं और सरकार को दोषी मान रहे हैं क्या उन्होंने अपने उस परिजन को शराब न पीने के लिए कोई ठोस कदम उठाने का कार्य किया था? यदि इन सब का उत्तर नहीं है तो पहले हमें अपने आपको सही करने का कार्य करना चाहिए, पर इससे सरकार की जवाबदेही कम नहीं हो जाती है। सरकार का, प्रशासन का यह कार्य होना चाहिए था कि वह अपनी खुफिया शाखा के माध्यम से इस तरह के लोगों को पकड़ने का कार्य करे, इन पर अंकुश लगाने का प्रयास करे।

शासन-प्रशासन-नागरिक को आपस में समन्वय स्थापित होने से ही समाज का निर्माण सुचारू रूप से होता है। किसी एक का दूसरे पर दोषारोपण करना कहीं न कहीं इस पूरे तन्त्र को खोखला तो करता ही है साथ में समाज में इस तरह की विभीषिका भी पैदा करता है। इस तथ्य को समझना होगा कि आज समन्वय की आवश्यकता है न कि किसी एक पर हावी होकर सत्ता स्थापित करने की। आपसी समन्वय से ही समाज-विरोधी ताकतों का विनाश होगा और आये दिन किसी न किसी रूप में होती आ रही मानवीय क्षति को रोकने में मदद मिलेगी।

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