तानाशाह भी मौत पर गिड़गिडाते

कहीं पढ़ रखा था कि मौत भी बहुत ही खूबसूरत होती होगी, उससे जो भी मिलता है जिन्दगी छोड़ देता है।दर्शन देने के लिए इस वाक्य को बार-बार दोहराया जा सकता है किन्तु जैसे ही मौत किसी भी रूप में खुद के सामने आ खड़ी होती है, वैसे ही ये सम्पूर्ण फलसफा हवा हो जाता है। इस संदर्भ में हम उन वीर सपूतों के, वीर शहीदों को शामिल नहीं कर रहे हैं जिन्होंने देश की खातिर अपना बलिदान दे दिया या आज भी देश की सीमाओं पर, सीमाओं के भीतर अपने आपको देश-रक्षा के लिए समर्पित किये हैं। इनके लिए मौत वाकई एक खूबसूरत एहसास रहा होगा और मौत का फलसफा इनके सामने आने के बाद अवश्य ही बदला होगा, ऐसा विश्वास है।

हमारा मन्तव्य उन तमाम सारे लोगों के संदर्भ में है जिन्होंने किसी न किसी रूप में अपने आपको तानाशाह की स्थिति में ला खड़ा किया और अन्ततः एक दिन मौत के हाथों पराजित होकर जिन्दगी को अलविदा कह गये। ताउम्र अपने आपको सर्वोच्च शिखर पर रखने वाले इन लोगों ने एक पल भी नहीं लगाया होगा किसी की जान लेने में और अपने अन्तिम समय में ये बेबस और बेदम से दिखाई दिये। बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं, हाल के कुछ वर्षों में विश्व समुदाय के सामने आतंक का, तानाशाह का पर्याय बनकर उभरे सद्दाम हुसैन, गद्दाफी, ओसामा बिन लादेन को इसी रूप में देखा जा सकता है। बरसों बरस ये सभी, इनके अलावा और भी, आतंक और तानाशाहात्मक रवैये से संसार को दहलाते रहे; बिना किसी ठोस कारण के मौत बरसाते रहे।

जैसा कि प्राकृतिक सत्य है, सनातन सत्य है कि जो इस संसार में आया है उसकी मृत्यु होना सुनिश्चित है, वह चाहे जीव-जन्तु हो अथवा कोई पेड़-पौधा। यह और बात है कि उसका अन्त किस रूप में उसके सामने आता है। विश्व-मंच पर उभरे तमाम तानाशाहों, आतंकी सरगनाओं का अन्त भी हुआ और इससे इस धारणा को और बल मिला कि अन्त समय में मृत्यु ही बलवान होकर आपके सामने आ खड़ी होती है। हाल के इन प्रभुतासम्पन्न व्यक्तियों की मृत्यु भी इस बात को और गम्भीरता से स्पष्ट करती दिखती है। सद्दाम, गद्दाफी, लादेन आदि की मृत्यु उनके तमाम सत्ता प्रतिष्ठानों को नेस्तनाबूत करने के बाद ही हुई; उनके वर्चस्व की समाप्ति सी करवाती दिखी; उनको बेदम और असहाय सा बनाती दिखी। मौत से बचने का रास्ता खोजता कोई गहरे गड्ढे में मिला तो कोई सुरंग में छिपा हुआ तो कोई एक अंधेरे बन्द कमरे में पर सभी अपनी मौत पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष भीख सी मांगते दिखे।

इस सत्य को जानने-समझने के बाद भी प्रत्येक मनुष्य में तानाशाहात्मक प्रवृत्त पाई जाती है, विध्वंसक क्षमतायें विकसित होती रहती हैं, सर्वनाश करने की दृष्प्रवृत्ति जन्म लेती रहती है, प्रभुत्व स्थापित करने की लालसा भटकती रहती है। इन सभी के बीच इंसान स्वयं को अपराध में संलिप्त करता चला जाता है। सत्ता के, प्रभुता के विभिन्न प्रतिष्ठानों पर स्थापित होने की अदम्य लालसा में इंसान इंसान के लहू को बहाता हुआ आगे बढ़ता ही चला जाता है। यह प्रवृत्ति कमोवेश सभी इंसानों में दिखाई देती है। सत्ता प्राप्ति की लालसा, प्रभुता हासिल करने की तृष्णा, इंसानों को तुच्छ समझने की मानसिकता के चलते ही हमें छोटे-बड़े रक्तपात भरे कुकृत्य देखने को मिलते हैं। आज यह स्थिति हमें अपने आसपास भी दिखाई दे रही है। राजनैतिक शक्ति का दुरुपयोग भीषण तरीके से, वीभत्स रूप में हमें नित ही देखने को मिल रहा है। कब, कहां, कौन विध्वंसक हालात पैदा करके समूचे वातावरण में नफरत का जहर घोल दे; आपस में रक्तसंचार करवा दे कहा नहीं जा सकता है। चीखते, तड़पते, बिलखते लोगों को देखकर कैसे कहा जा सकता है कि मौत खूबसूरत होती होगी, यदि होती भी होगी तो इन तानाशाहों का मौत से बचने को गिड़गिड़ाना क्यों होता है?

सत्ता की शक्ति का दुरुपयोग कर रहे लोगों को, अपनी शक्ति से इंसानों को कीड़े-मकोड़ों की तरह कुचल रहे लोगों को, एक पल में सैकड़ों-सैकड़ों लोगों को मौत की नींद सुला देने वालों को क्या इन तानाशाहों की जिल्लत, बेबस, बेदम मृत्यु से कुछ सीखने को मिलेगा? हमारा विश्वास है कि नहीं....क्योंकि यदि किसी एक ने भी कुछ सीखा होता तो विश्व समुदाय ने लगातार तानाशाहों को, आतंकियों को अपने बीच सिर उठाते नहीं देखा होता। इन सबके बीच यदि मौत का फलसफा याद नहीं रहता है तो इस एक फलसफे को तो याद ही रखा जा सकता है कि

संसार का सबसे बड़ा दुख,

किसी की आंख में आंसू होना,

हमारे कारण,

और

संसार का सबसे बड़ा सुख,

किसी की आंख में आंसू होना,

हमारे लिए।

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