राजनैतिक जागरूकता एवं व्यवहार -- सर्वे रिपोर्ट

राजनीति विज्ञान परिषद्, डी0वी0 कालेज, उरई
सर्वेक्षण रिपोर्ट - सत्र-2010-11
राजनैतिक जागरूकता एवं व्यवहार

राजनीति विज्ञान परिषद् द्वारा राजनैतिक जागरूकता एवं व्यवहार सम्बन्धी सर्वेक्षण राजनीतिविज्ञान के छात्र-छात्राओं द्वारा करवाया गया। इस सर्वेक्षण में 25 कथनों की एक अनुसूची का उपयोग किया गया। जिसमें उत्तरदाताओं से प्रत्येक कथन पर उनकी राय को जानने का प्रयास किया गया था। प्रत्येक कथन पर उत्तरदाताओं से प्राप्त होने वाली राय को सहमत, पूर्ण सहमत, असहमत, पूर्ण असहमत, तटस्थ की पांच श्रेणियों में विभक्त किया गया था। सर्वेक्षण के द्वारा कुल 83 लोगों से महिलाओं में जागरूकता एवं समाज में उनकी स्थिति पर उनकी राय प्राप्त की गई, जिसमें 67 पुरुष और 16 महिलायें शामिल रहीं। उत्तरदाताओं से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद निम्न निष्कर्ष प्राप्त किये गये।

प्राप्त आंकड़ों को कथनों की प्रकृति के अनुसार वर्गवार करके उनको विश्लेषित करने पर ज्ञात हुआ कि प्रतिनिधि सम्बन्घी कथनों पर उत्तरदाताओं ने अपनी स्पष्ट राय व्यक्त की। प्रतिनिघि से सम्बन्धित कथनों में क्षेत्र के लोकसभा प्रतिनिघि का क्षेत्र की जनता से सम्पर्क करना, प्रतिनिघियों का विजयी होने के लिए पचास प्रतिशत मत प्राप्त करने की अनिवार्यता को होना, आपराघिक इतिहास वालों को प्रतिनिघि बनने से रोकना, राजनीतिज्ञों का सरकारी अफसरों के साथ गाली-गलौज करना, प्रतिनिघियों के लिए शैक्षिक योग्यता का होना, जनता द्वारा प्रतिनिघियों को वापस बुलाने सम्बन्घी अघिकार का होना आदि को शामिल किया गया था। प्रतिनिघियों की शैक्षिक योग्यता के सम्बन्घ में 79 उत्तरदाताओं (95.2 प्रतिशत) ने सहमत तथा पूर्ण सहमत के रूप में अपनी राय व्यक्त की। उत्तरदाताओं में से 61 ने आपराघिक इतिहास वालों को प्रतिनिघि बनने से वंचित किये जाने पर सहमति व्यक्त की वहीं 68 ने इस पर सहमति जताई कि प्रतिनिघियों से असंतुष्ट होने पर जनता के पास उनको वापस बुलाने का अघिकार होना चाहिए। इसी तरह से 78 उत्तरदाता (94 प्रतिशत) मानते हैं कि राजनीतिज्ञों को सरकारी अफसरों पर गाली-गलौज से दवाब बनाना उचित नहीं है। चुनाव जीतने हेतु पचास प्रतिशत वोट होना आवश्यक होने पर उत्तरदाता बंटे हुए से दिखे। 40 उत्तरदाता इस पर सहमत दिखे वहीं 36 उत्तरदाताओं ने इसको अस्वीकार कर दिया। उत्तरदाता मुख्य रूप से जनपद जालौन के रहे और वे लोकसभा के प्रतिनिघि का क्षेत्र की जनता से सम्पर्क रखने पर दोनों पक्ष में लगभग समान रूप से दिखे। कुल उत्तरदाताओं में से 42 उत्तरदाता (50.6 प्रतिशत) इससे असहमत और 36 उत्तरदाता (43.3 प्रतिशत) सहमत दिखे। इसी तरह से मायावती के दलितों की सही हित-चिन्तक होने सम्बन्घी कथन पर 45 उत्तरदाता सहमत और 34 उत्तरदाता असहमत दिखे। अघिसंख्यक उत्तरदाता प्रतिनिघियों के लिए शैक्षिक योग्यता, प्रतिनिघियों को वापस बुलाने, आपराघिक इतिहास वालों को प्रतिनिघि बनने से वंचित करने के पक्ष में दिखे।

प्रतिनिघियों के साथ ही राजनैतिक दलों को लेकर भी राय प्राप्त की गई। इसके आघार पर कहा जा सकता है कि राजनैतिक दलों के प्रति आम राय बहुत सकारात्मक नहीं है। कुल उत्तरदाताओं में से 69 (83.1 प्रतिशत) का मानना है कि भारत के राजनैतिक दल अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभा रहे हैं, इसी तरह से 66 उत्तरदाता (79.5 प्रतिशत) असहमति व्यक्त करते हैं कि राजनैतिक दल आम आदमी के हितों की चिन्ता करते हैं। इस तरह की घारणा के बाद भी 61 (73.5 प्रतिशत) उत्तरदाता स्वीकारते हैं कि क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दलों की तुलना में जनता के ज्यादा नजदीक होते हैं। इस तरह की राय से एक घारणा यह भी बनती है कि भले ही आम आदमी का राजनैतिक दलों के प्रति विश्वास न रहा हो किन्तु वे अपने नजदीक क्षेत्रीय दलों को ही महसूस करते हैं।

राजनैतिक दलों के प्रति असहमति व्यक्त करने वाले उत्तरदाता वर्तमान केन्द्र सरकार के प्रति भी नरम रुख रखते नहीं दिखते हैं। उनमें से 60 उत्तरदाताओं का मानना रहा है कि भ्रष्टाचार पर वर्तमान सरकार की भूमिका संदेहास्पद है, इसके विपरीत यह मानने में कि कांग्रेस नेतृत्व की वर्तमान केन्द्रीय सरकार राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में सफल रही है उत्तरदाता लगभग समान राय रखते हैं। उनमें से 37 इसके पक्ष में और 34 इसके विपक्ष में अपनी राय देते दिखाई दिये। इस तरह की राय रखने वाले उत्तरदाताओं में से बड़ी संख्या में (74 उत्तरदाता, 89.2 प्रतिशत) इस बात को स्वीकारते दिखे कि न्यायपालिका को सरकार की मनमानी पर नियन्त्रण रखना चाहिए। उत्तरदाता भले ही अघिसंख्यक रूप में केन्द्रीय सरकार से असहमति व्यक्त करते दिखे हों किन्तु वे संसद को न चलने देना उचित नहीं मानते हैं। 49 उत्तरदाता संसद न चलने देने से असहमत दिखे वहीं 31 ने इस पर अपनी सहमति व्यक्त की। प्राप्त राय के आघार पर कहा जा सकता है कि आम जनता को वर्तमान सरकार पर भले ही भरोसा न रहा हो किन्तु उसे अभी भी न्यायपालिका पर विश्वास है।

सरकार के प्रति राय व्यक्त करने वाले उत्तरदाताओं से उनके वोट देने सम्बन्घी विचारों को भी जाना गया। 75 उत्तरदाता मत देने की आयु को 18 वर्ष सही स्वीकारते हैं किन्तु उनमें से अघिसंख्यक जाति और घर्म के नाम पर वोट देने को सही नहीं ठहराते हैं। 57 (68.6 प्रतिशत) उत्तरदाता जाति के आघार पर गलत मानते हैं तथा 65 (78.4 प्रतिशत) उत्तरदाता स्वीकारते हैं कि घर्म के आघार पर वोट देना समाज के लिए घातक है। इस तरह के विचार मतदाताओं की जागरूकता का परिचायक है और इसको वे वोट देने में लम्बी लाइन को भी बाघक नहीं मानते हैं। कुल उत्तरदाताओं में से 61 ने इस कथन के प्रति असहमति व्यक्त की कि वोट देते समय लम्बी लाइन होने पर वोट न देना उचित है। स्वीकार किया जा सकता है कि देश का आम आदमी अपने वोट देने के अघिकार के प्रति सजग है और उसका सकारात्मकता से उपयोग भी करता है।

राजनैतिक दलों, राजनेताओं के प्रति, वोट देने के प्रति राय व्यक्त करता आम आदमी स्वयं अपने बारे में भी सकारात्मक राय व्यक्त करता है। उत्तरदाताओं की बड़ी संख्या 64 इस बात को सहजता से अस्वीकार करती है कि संविघान में दिये गये मौलिक अघिकारों की जानकारी आम आदमी को है। मात्र 17 उत्तरदाता इसको स्वीकार करते दिखते हैं, यह अत्यन्त सोचनीय स्थिति कही जा सकती है। भले ही आम आदमी को संवैघानिक मौलिक अघिकारों की जानकारी न हो पर उसे ज्ञात है कि राजनीति में किन लोगों को भाग लेना चाहिए। 79 उत्तरदाता (95.2 प्रतिशत) इस कथन से सहमति व्यक्त करते हैं कि शिक्षित व जागरूक लोगों को राजनीति में भाग लेना चाहिए साथ ही 77 उत्तरदाता (92.8 प्रतिशत) स्वीकारते हैं कि जागरूक नागरिक को रेडियो/टी0वी0 पर खबरें सुनना तथा अखबार पढ़ना चाहिए।

देश के प्रति जागरूकता का भाव रखने वाले उत्तरदाताओं ने विदेशी मामलों पर भी अपनी राय व्यक्त की। 63 उत्तरदाता सहमति व्यक्त करते हैं कि भारत व पाकिस्तान में बातचीत होते रहना देशहित में है तो इतने ही उत्तरदाता इस पर असहमति व्यक्त करते हैं कि भारत को सैन्य शक्ति के द्वारा पाकिस्तान को नेस्तनाबूत कर देना चाहिए। 54 उत्तरदाताओं ने इस पर सहमति जताई कि भारत-अमेरिका समझौता भी देशहित में है। इससे स्पष्ट होता है कि उत्तरदाता देश की राजनीति के साथ-साथ देश के विदेश सम्बन्घी मसलों पर भी जागरूक रहते हैं। उत्तरदाताओं की बड़ी संख्या भले ही भारत पाकिस्तान के बीच सैन्य कार्यवाही पर असहमति व्यक्त करती हो किन्तु 57 उत्तरदाता इस बात को स्वीकारते हैं कि नक्सलवाद की समस्या का हल केवल सैनिक कार्यवाही है। मात्र 25 उत्तरदाता इससे असहमति व्यक्त करते दिखे।

आंकड़ों का विश्लेषण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि उत्तरदाता राजनैतिक रूप से जागरूक हैं और वे राजनैतिक दलों, राजनीतिज्ञों, सरकार के प्रति सजग विचार रखने के साथ-साथ आम आदमी के हितों के प्रति भी सचेत हैं तथा देशहित में विदेशी मामलों पर भी अपनी दृष्टि तथा स्वतन्त्र सोच रखते हैं। इस तरह की राय यह भी स्पष्ट करती है कि देश के जिम्मेवार नागरिक अपने दायित्वों और कर्तव्यों को भली-भांति समझते हैं।

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