महिलाओं में जागरूकता एवं समाज में उनकी स्थिति -- सर्वे रिपोर्ट

राजनीति विज्ञान परिषद्, डी0वी0 कालेज, उरई
सर्वेक्षण रिपोर्ट - सत्र-2010-11
महिलाओं में जागरूकता एवं समाज में उनकी स्थिति

राजनीति विज्ञान परिषद् द्वारा महिलाओं में जागरूकता एवं समाज में उनकी स्थिति सम्बन्धी सर्वेक्षण राजनीतिविज्ञान के छात्र-छात्राओं द्वारा किया गया। इस सर्वेक्षण में 25 कथनों की एक अनुसूची का उपयोग किया गया। जिसमें उत्तरदाताओं से प्रत्येक कथन पर उनकी राय को जानने का प्रयास किया गया था। प्रत्येक कथन पर उत्तरदाताओं से प्राप्त होने वाली राय को सहमत, पूर्ण सहमत, असहमत, पूर्ण असहमत, तटस्थ की पांच श्रेणियों में विभक्त किया गया था। सर्वेक्षण के द्वारा कुल 72 लोगों से महिलाओं में जागरूकता एवं समाज में उनकी स्थिति पर उनकी राय प्राप्त की गई, जिसमें 39 पुरुष और 33 महिलायें शामिल रहीं। उत्तरदाताओं से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद निम्न निष्कर्ष प्राप्त किये गये।

महिलाओं के राजनीति में उपस्थिति सम्बन्धी कथनों के आधार पर उत्तरदाताओं की राय को विभिन्न बिन्दुओं पर प्राप्त किया गया। ‘महिलाओं को घर का कामकाज छोड़कर राजनीति तथा समाज सेवा में भाग लेना चाहिए’ कथन पर 72 उत्तरदाताओं में से 41 उत्तरदाता विपरीत राय देते दिखे। कथन के प्रति असहमति व्यक्त करने वालों में 32 तथा पूर्ण असहमति व्यक्त करने वालों में 9 लोग रहे। इसके विपरीत ‘पंचायतों में आरक्षण से महिलाओं की स्थिति मजबूत हुई है’ मानने वालों की संख्या अधिक रही। सहमत तथा पूर्ण सहमत के रूप में 54 उत्तरदाता दिखे जिसमें से 27 महिलायें रहीं। राजनीति में प्रमुख पदों पर महिलाओं के चयन से महिलाओं की स्थिति को बेहतर मानने तथा राजनीति में सक्रिय महिलाओं की भूमिका को महिलाओं के विकास के लिए संतोषजनक मानने वालों की संख्या क्रमशः 61 तथा 47 रही। इन आंकड़ों में पुरुषों द्वारा सहमति व्यक्त करने वाली संख्या (क्रमशः 31 तथा 25) महिलाओं की संख्या (क्रमशः 28 तथा 21) से अधिक रही। आंकड़ों से स्पष्ट है कि महिलाओं के राजनीति करने और राजनीति के द्वारा महिलाओं के विकास, उनकी स्थिति के बेहतर होने को पुरुष भी अधिसंख्यक रूप में स्वीकारते हैं।

अनुसूची के कथनों को स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के आधार पर विश्लेषित करने पर ज्ञात हुआ कि 72 उत्तरदाताओं में से 71 उत्तरदाता इस कथन के प्रति सहमति देते दिखे कि समाज के सर्वांगीण विकास के लिए स्त्री-पुरुष को समान स्थिति प्राप्त होनी चाहिए। सर्वेक्षण में शामिल समस्त महिला उत्तरदाताओं ने इस पर अपनी सहमति व्यक्त की। इसी तरह से 62 उत्तरदाताओं ने इस पर अपनी सहमति सहमत तथा पूर्ण सहमत के रूप में व्यक्त की कि स्त्रियों की सफलता व स्थिति के सुधार में पुरुषों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस कथन के प्रति 35 पुरुषों के साथ-साथ 27 महिलाओं ने भी अपनी सहमति दर्शाकर महिलाओं के विकास में पुरुषों के सहयोग को स्वीकार किया। पुरुषों के सहयोग को स्वीकारने वाले उत्तरदाता इस बात को भी स्वीकारते हैं कि महिला सशक्तीकरण पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती है। 42 उत्तरदाता (15 पुरुष तथा 27 महिलायें) इसके प्रति सहमति व्यक्त करते दिखे। अनुसूची के इस कथन कि ‘महिलाओं का उत्तेजक कपड़े पहनना पुरुषों को छेड़खानी के लिए प्रेरित करता है’ आश्चर्यजनक रूप से अधिसंख्यक महिलाओं द्वारा स्वीकार किया गया। कुल 72 उत्तरदाताओं में से 66 उत्तरदाताओं ने सहमत तथा पूर्ण सहमत के रूप में इस कथन के प्रति राय व्यक्त की, जिसमें से यदि स्त्री-पुरुष की संख्या के अनुसार देखा जाये तो 39 पुरुषों में से 35 ने तथा 33 महिलाओं में से 31 ने इस पर सहमति व्यक्त की। इससे स्पष्ट होता है कि आंकड़े जहां एक ओर दर्शाते हैं कि महिलाओं के विकास में पुरुषों का भी योगदान है वहां यह भी दर्शाते हैं कि महिलाओं के उत्तेजक परिधान पुरुषों को छेड़खानी के लिए प्रेरित करते हैं।

महिलाओं के परिधान भले ही पुरुषों को छेड़छाड़ को प्रेरित करते हों किन्तु मीडिया को, टी0वी0, फिल्मों को आधार बनाकर प्राप्त की गई राय से प्राप्त आंकड़ों से ज्ञात होता है कि फिल्में, टी0वी0 चैनल भी महिलाओं के प्रति यौन अपराधों व हिंसा के लिए उत्तरदायी हैं। आंकड़ों से स्पष्ट है कि 62 उत्तरदाताओं ने इसके प्रति सहमति व्यक्त की है जिसमें से 34 पुरुष तथा 28 महिलायें रहीं। विज्ञापनों में महिलाओं की उत्तेजक भूमिका को महिला सशक्तीकरण में बाधक मानने वाले उत्तरदाताओं की संख्या 41 रही वहीं विज्ञापनों में महिलाओं का रोजगार की दृष्टि से काम करना उचित मानने वाले उत्तरदाताओं की संख्या 58 रही। विज्ञापनों में काम करने को रोजगार की दृष्टि से सही ठहराने वालों में महिलाओं तथा पुरुषों की संख्या क्रमशः 28 तथा 30 रही। इसके विपरीत 42 उत्तरदाताओं ने नकारा कि फिल्मों, टी0वी0 चैनलों पर दर्शायी गई महिलाओं की छवि आधुनिक भारत की महिलाओं की वास्तविक छवि है जबकि 38 उत्तरदाता इसे स्वीकारते हैं। इन दोनों में महिलाओं की संख्या क्रमशः 18 तथा 15 रही। निष्कर्षों से माना जा सकता है कि भले ही विज्ञापन रोजगार की दृश्टि से उचित हों किन्तु इन विज्ञापनों में दर्शायी गई महिला छवि महिला सशक्तीकरण में बाधक बनती है। इसके साथ ही महिलाओं के प्रति यौन अपराध तथा हिंसा के लिए फिल्मों, टी0वी0 चैनलों को भी दोषी ठहराया जा सकता है, जो महिलाओं की वास्तविक छवि को प्रस्तुत नहीं करते हैं।

महिलाओं के प्रति होने वाली घरेलू हिंसा को लेकर उत्तरदाताओं की ओर से मिली-जुली राय प्राप्त हुई। 37 उत्तरदाता स्वीकारते हैं कि विगत दस वर्षों की घटनाओं के आधार पर घरेलू हिंसा कम हुई है जबकि 33 उत्तरदाता इसको अस्वीकार करते हैं। घरेलू हिंसा कम होने के प्रति सहमति दर्शाने वालों में 20 महिलायें रहीं जबकि इसके प्रति असहमति रखने वालों में से 12 महिलायें रहीं। अतः कहा जा सकता है कि महिलायें स्वीकारती हैं कि घरेलू हिंसा पहले से कम हुई है। कुछ इसी तरह की स्थिति महिलाओं को घरेलू हिंसा अधिनियम के उपबन्धों की जानकारी होने सम्बन्धी कथन पर दिखाई दी। कुल उत्तरददाताओं में से 31 स्वीकारते हैं कि महिलाओं को घरेलू हिंसा से सम्बन्धित उपबन्धों की जानकारी है जबकि 37 उत्तरदाता इस कथन के प्रति असहमति व्यक्त करते हैं। ‘महिलाओं का कामकाजी होना उनके दाम्पत्य जीवन में झगड़े उत्पन्न करता है’ के प्रति असहमति व्यक्त करने वाले उत्तरदाताओं की संख्या 49 रही, इसमें 22 महिलायें तथा 27 पुरुष उत्तरदाता रहे।

कन्या भ्रूण हत्या को समाज के सन्तुलित विकास के लिए घातक मानने वालों की संख्या 66 रही वहीं ‘कन्या भ्रूण हत्या के लिए पुरुषों से अधिक महिलायें उत्तरदायी हैं’ पर सहमति देने वाले उत्तरदाताओं की संख्या 48 रही। इसमें 27 पुरुषों के साथ-साथ 21 महिलायें शामिल रहीं। भले ही कन्या भ्रूण हत्या के लिए महिलाओं को उत्तरदायी ठहराने में महिलाओं की संख्या में कमी नहीं है किन्तु यह स्वीकारने में कि ‘महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है’ महिलायें पीछे रहीं। इस कथन के प्रति सहमति व्यक्त करने वाले 68 उत्तरदाताओं में से 38 पुरुषों ने तथा 30 महिलाओं ने सहमति व्यक्त की। अपने अधिकारों के प्रति महिलाओं के जागरूक होने को स्वीकार करने वाले उत्तरदाताओं में से 58 उत्तरदाता इसको स्वीकारते दिखे कि महिलाओं के उत्थान में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का परम्परागत सोच अधिक बाधक है। इसमें 31 पुरुष तथा 27 महिलायें शामिल रहीं।

भले ही महिलाओं की परम्परागत सोच को महिलाओं के विकास में बाधक मानने वालों की संख्या अधिक हो किन्तु इसको स्वीकारने वाले भी कम नहीं हैं कि महिलाओं की स्थिति भारत सहित विश्व में बेहतर हुई है। कुल 72 उत्तरदाताओं में से 65 इस कथन के प्रति सहमति व्यक्त करते दिखे, जिसमें 35 पुरुष तथा 30 महिलायें रहीं। इसी तरह महिलाओं को भोग की वस्तु मानने वाली सोच को अप्रासंगिक बताने वालों की संख्या 53 रही, जिसमें पुरुषों तथा महिलाओं की संख्या क्रमशः 30 तथा 23 रही। माना जा सकता है कि महिलाओं के प्रति चली आ रही परम्परागत सोच में बदलाव आया है तथा उनकी स्थिति बेहतर हुई है।

बांदा के चर्चित शीलू प्रकरण को लेकर मांगी गई राय के आधार पर ज्ञात हुआ कि इस समूचे मामले में प्रशासन की भूमिका को उचित न मानने वालों की संख्या 41 (25 पुरुष तथा 16 महिलायें) रही जबकि 22 (9 पुरुष तथा 13 महिलायें) ने भूमिका को सही ठहराया। इसके अतिरिक्त 39 उत्तरदाता स्वीकारते दिखे कि महिलाओं की स्थिति में सुधार गुलाबी गैंग जैसे संगठनों के द्वारा हो सकता है। इसके विपरीत 22 उत्तरदाताओं ने इसे अस्वीकार किया तथा 13 ने तटस्थता का रुख अपनाते हुए कोई राय व्यक्त नहीं की।

कुल मिला कर समस्त अनुसूची के प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण को आधार बना कर देखें तो आसानी से कहा जा सकता है कि महिलाओं की स्थिति में पहले से अधिक सुधार हुआ है; महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है; महिलाओं के प्रति यौन अपराधों के लिए उत्तेजक परिधान यदि उत्तरदायी है तो फिल्में, टी0वी0 चैनल भी उत्तरदायी हैं। विज्ञापनों में काम करना महिलाओं के लिए रोजगार की दृष्टि से उत्तरदाता भले ही उचित मानते हों किन्तु उनका यह भी मानना है कि इसमें दर्शायी जा रही महिलाओं की छवि महिला सशक्तीकरण में बाधक है।

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