मजहबी कट्टरता छोड़ें भारतीय मुसलमान

फिलिस्तीन के इस्लामी आतंकी संगठन हमास ने इजरायल पर जबरदस्त तरीके से हमला किया था. इस हमले में आतंकियों ने इजरायल के आम नागरिकों, सैनिकों को मारने के साथ-साथ वहाँ की अनेक महिलाओं, बच्चों को बंधक बना लिया था. इन्हीं बंधकों में से एक जर्मन नागरिक को मारकर उसकी नग्न मृत देह की परेड निकालने का अमानुषिक कार्य इन आतंकियों द्वारा किया गया. आतंकियों द्वारा अल्लाह-हू-अकबर के नारों के बीच महिलाओं को प्रताड़ित करने के वीडियो भी सामने आये. बंधक महिलाओं को नग्न कर उनके साथ घिनौनी हरकतें की जा रही. हमास के आतंकी इस्लामी नारों के साथ जश्न मनाते हुए बंधक महिलाओं, बच्चों के साथ वहशियाना हरकतें तक कर रहे. हमास आंतकियों के ऐसे कृत्यों की एक तरफ समूचे विश्व ने निंदा की, वहीं दूसरी तरफ भारत के कट्टरपंथी मुस्लिमों ने ऐसी कबीलाई हरकतों, मानसिकता का समर्थन किया है. ये कट्टरपंथी मुस्लिम खुलकर हमास के हमले का समर्थन करते हुए उसे जायज बता रहे हैं.

 



आश्चर्य की बात ये है कि ऐसे आतंकी समर्थन के पीछे उच्च शिक्षित नागरिक, राजनैतिक व्यक्ति, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आदि तक शामिल हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हमास के समर्थन में सैकड़ों विद्यार्थियों द्वारा जुलूस निकाला गया. इसमें हमास आतंकियों के पक्ष में अपना समर्थन व्यक्त करने के साथ-साथ फिलिस्तीन की स्वतंत्रता, नारा-ए-तकबीर...अल्लाह-हू-अकबर आदि जैसे नारे लगाए गए. यद्यपि पुलिस द्वारा इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है तथापि ये घटना बताने को पर्याप्त है कि देश का बहुसंख्यक शिक्षित मुस्लिम क्या सोच रखता है. इसी तरह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि वास्तविकता यह है कि हमास-इजराइल युद्ध का असली कारण खुद इजराइल है. फिलिस्तीन सिर्फ अपने ऊपर हुए उत्पीड़न का बचाव कर रहा है. पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की परंपरा को नजरअंदाज करते हुए शोषितों के बजाय उत्पीड़कों का समर्थन किया. यह पूरे देश के लिए शर्मनाक और दुखद है.

 

यहीं आकर भारतीय राजनीतिज्ञों को, भारतीय मुसलमानों को, इस्लामिक आतंकवाद को छद्म बताने वालों को, तुष्टिकरण के नाम पर मुस्लिम आतंकियों की पैरवी करने वालों को जागने की जरूरत है. असल में सम्पूर्ण विश्व में कहीं भी किसी भी रूप में ऐसी कोई घटना हो जिसके केन्द्र में मुसलमान हो तो भारत में रहने वाले मुस्लिम तत्काल ही अपनी स्थिति को परखने, उसे और मजबूत करने की कोशिश करने लगते हैं. राजनैतिक स्वार्थ के चलते, मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते देश के मुसलमानों को हमेशा ये कहकर डराया जाता रहा है कि उनके साथ भेदभाव किया जाता है, उनको आतंकी समझा जाता है. एक बात सामाजिक सन्दर्भों में कभी समझ नहीं आई कि ऐसी स्थिति के बाद भी जब कभी भारतीय मुसलमानों को अवसर मिला तो वे अपनी प्रतिबद्धता आतंकवाद के विरोध में दिखाने से चूक गए. मुस्लिम पक्षधर बनने के लोभ में, मजहबी दिखने की कट्टरता में वे जाने-अनजाने दूसरे पाले में खड़े दिखाई दिए.

 

आखिर ऐसी मुस्लिम कट्टरता, पक्षधरता समाज को कहाँ ले जाएगी? कितनी जगह आतंकी वारदातें करने के बाद, कितने मासूमों की, निर्दोषों की जान लेने के बाद ये मानसिकता बदलेगी? इजरायल और फिलिस्तीन के सन्दर्भ में किसी एक का पक्षधर होना तो समझ आता है मगर फिलिस्तीन के सन्दर्भ में हमास जैसे आतंकी का पक्ष लेना समझ से परे है. जिस तरह के कदम पिछले दिनों में हमास द्वारा उठाये गए हैं, इस्लामिक देशों द्वारा प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष ढंग से उठाये गए हैं, वे अपने आपमें बहुत कुछ सोचने को विवश करते हैं. इस बिंदु पर आकर भारत के मुसलमानों को समझना चाहिए कि आखिर यूएई और सऊदी अरब के मुसलमान क्यों हमास के पक्ष में नहीं हैं? क्यों अरब देश फिलिस्तीनी नागरिकों को अपने यहाँ शरण देने को तैयार नहीं हैं? इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों को उत्तरी गाजा छोड़ने का अल्टीमेटम दिया जा चुका है. गाजा के दो तरफ इजरायल है, तीसरी तरफ समुद्र. एक सीमा अवश्य ही इस्‍लामिक मुल्‍क मिस्र से जुड़ी है लेकिन मिस्र ने एक भी फिलिस्तीनी नागरिक को अपनी सीमा में दाखिल नहीं होने दिया है. देखा जाये तो हमास का इजरायल पर हमला किसी उत्पीडन के शिकार का उत्पीडक के विरुद्ध प्रतिकार नहीं है बल्कि ये प्रत्येक उस व्यवस्था और अस्तित्व को नष्ट करने का दुस्साहस है, जो इस्लाम से इतर जिंदा है. इस मानसिकता को कमोबेश सभी राष्ट्र जानते-समझते हैं. इसी कारण फिलिस्तीनी नागरिकों को कोई मुस्लिम देश भी अपने यहाँ शरण देने को तैयार नहीं हैं. एक अन्य कारण इन फिलिस्तीनी नागरिकों का मूलरूप से हमास को समर्थन देना है. इसके साथ ही आतंकी समर्थित फिलिस्तीनी नागरिकों के कारण इन देशों को अपनी व्यवस्था में गड़बड़ी की आशंका बनी रहती है. किसी समय जॉर्डन ने लाखों फिलिस्तिनियों को अपने देश में शरण दी, बाद में वे जॉर्डन के शाह के ही दुश्मन हो गए. यूएई, सऊदी अरब के अपने-अपने राष्ट्रहित हैं जो उनके लिए मजहबी कट्टरता से ऊपर हैं. इसी कारण यहाँ के मुसलमान अपने देश के साथ हैं. असल में किसी भी देश के नागरिकों के लिए उनका राष्ट्रहित सर्वोपरि है. जबकि यही बात भारतीय मुसलमानों के सन्दर्भ में उपयुक्त नहीं लगती है.

 

आज जबकि वैश्विक सन्दर्भ में इस्लामिक आतंकवाद का विरोध होने लगा है, तब देश के मुस्लिम संगठनों को, मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करते राजनीतिज्ञों को, मुस्लिम नेताओं को एकसुर में हमास के इस हमले का पुरजोर विरोध करने की आवश्यकता है. इस हमले के बाद भी हमास का साथ देना आतंकवाद को पोषित करना ही है. इजरायल का समर्थन करने से यदि हमासरुपी आतंकी संगठन का अस्तित्व समाप्त होता है तो यह सकल विश्व के आतंकियों को एक सन्देश होगा. ऐसे नाजुक पल में मुस्लिम कट्टर होने की बजाय इस देश के समस्त मुस्लिमों को जागने की जरूरत है. यदि इस घटना के बाद भी इस्लामिक आतंकवाद का विरोध मुस्लिम नेताओं, मुस्लिम मजहबी संगठनों, मुस्लिम बुद्धिजीवियों द्वारा नहीं किया गया तो न केवल आतंकी मजबूत होंगे वरन भारतीय धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने वाले भी मजबूत होंगे.


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