सिक्किम बाढ़ विभीषिका : जलवायु परिवर्तन से आया संकट

जलवायु परिवर्तन कब कहर बनकर टूट पड़े कहा नहीं जा सकता. अभी हाल ही में सिक्किम ने इसकी मार को सहा है. भीषण बाढ़ के रूप में जो त्रासदी सिक्किम पर पड़ी, उसे लेकर अब चिंतन-मनन चल रहा है कि इतनी बड़ी आपदा का कारण बादलों का फटना रहा या फिर कुछ और. पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम की तीस्ता नदी की बाढ़ में इस पर बना चुंगथांग बाँध बह गया. इसके साथ-साथ इस भीषण बाढ़ में ग्यारह पुल बह गए. पानी की पाइपलाइन, सीवेज, मकान, राष्ट्रीय राजमार्ग सहित अनेक सड़कों का टूटना विभीषिका को दर्शाता है. एक अनुमान के अनुसार इस बाढ़ से बाईस हज़ार से ज़्यादा लोग प्रभावित बताए गए हैं. राज्य सरकार ने इस तबाही को प्राकृतिक आपदा घोषित कर दिया है. 


इसे गंभीरता से समझने की आवश्यकता है कि आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि तीस्ता नदी में विनाशकारी बाढ़ आ गई? इसका प्रथम दृष्टया कारण राज्य के उत्तर-पश्चिम में सत्रह हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित दक्षिण लोनाक झील को बताया जा रहा है. इस झील को वैसे भी जीएलओएफ के लिए अतिसंवेदनशील चौदह सम्भावित ख़तरनाक झीलों में से एक के रूप में चिन्हित किया गया था. लोनाक झील ग्लेशियर के पिघलने से बनी बड़ी हिमनद झील है. हिमनद के फटने से आई बाढ़, जिसे तकनीकी अर्थों में ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) कहा जाता है, ने तबाही मचा दी. जब ग्लेशियरों से बनी झील अपने मोराइन जो बर्फ, रेत, तलछट, प्राकृतिक मलबे आदि से बनते हैं, से मुक्त हो जाती है तो ग्लेशियल झील टूट जाती है. परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में पानी बहने से विनाशकारी बाढ़ आती है. ऐसे जीएलओएफ़ बहुत ख़तरनाक होते हैं और बड़ी तबाही लेकर आते है. उत्तराखंड, गुजरात, केदारनाथ, हिमाचल प्रदेश आदि में आई बाढ़ इसी का उदाहरण है. जलवायु परिवर्तन के कारण से विगत वर्षों में जीएलओएफ़ की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है. इसने हिमालय की तलहटी में रहने वाले लोगों के लिए तबाही मचा रखी है.




हाल की इस बाढ़ के पीछे दो कारणों पर विशेषज्ञों का ध्यान जा रहा है. इसमें एक तो बादलों का फटना अथवा भारी बारिश का होना है और दूसरा कारण नेपाल, दिल्ली सहित अनेक जगह आने वाले भूकंप हैं. भारी बारिश को लेकर मौसम विज्ञान विभाग का कहना है कि दक्षिणी सिक्किम में अवश्य भारी बारिश हुई किन्तु उत्तरी सिक्किम में ऐसा कुछ नहीं रहा. इसी तरह नदी बाँध पर लम्बे समय से काम कर रहे एक पर्यावरण कार्यकर्त्ता, जल और बाँध विशेषज्ञ का कहना है कि यह झील पाँच हजार मीटर से अधिक ऊँचाई पर है. इतनी ऊँचाई पर बादल फटने की सम्भावना बहुत कम होती है. बाद में इसी तरह की जानकारी केन्द्रीय जल आयोग द्वारा भी दी गई. भारी बारिश से इतर भूकंप को जीएलओएफ के लिए जिम्मेवार माने जाने सम्बन्धी अटकलें इसलिए व्यक्त की जा रही हैं क्योंकि लोनाक झील और भूकंप केंद्र के बीच मात्र सात सौ किमी की दूरी है. संभव है कि नेपाल और दिल्ली में आये भूकम्पों की श्रृंखला ने एक ट्रिगर का काम किया हो. इसके साथ-साथ सिक्किम की वर्तमान बाढ़ त्रासदी का एक कारण झील के आसपास के हिमाच्छादित क्षेत्र में होने वाला हिमस्खलन भी माना जा रहा है.


सिक्किम में आई इस बाढ़ के पीछे कारण कुछ भी रहा हो मगर ये सत्य है कि जलवायु परिवर्तनों की इसमें बहुत बड़ी भूमिका है. ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तरी सिक्किम में स्थित दक्षिण लोनाक ग्लेशियर कथित तौर पर सबसे तेजी से पीछे हटने वाले ग्लेशियरों में से एक है. 1962 से 2008 तक 46 वर्षों में यह ग्लेशियर अपने स्थान से लगभग दो किमी पीछे चला गया. उसका अपना स्थान छोड़ना यहाँ रुका नहीं और इसके बाद 2019 तक यह चार सौ मीटर तक और पीछे गया. इस कारण इसका क्षेत्रफल भी बढ़ता जा रहा था. वर्ष 1990 में जब इसमें पानी भरना आरम्भ हुआ तो उस समय मात्र सत्रह हेक्टेयर क्षेत्रफल वाली इस झील का विस्तार लगभग 168 हेक्टेयर में हो चुका था. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर के लगातार पिघलने से इस झील का विस्तार हो रहा था. स्पष्ट है कि इस पीछे हटने से बनी झील में पानी की मात्रा लगातार बढ़ती रही. एक अनुमान के अनुसार जिस समय लोनाक झील टूटी, उसमें छह हजार करोड़ लीटर पानी था. यद्यपि वर्ष 2016 में सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने लोनाक झील से अतिरिक्त जल निष्काषित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण योजना शुरू की थी. इसके लिये उच्च घनत्व वाले पॉलीथीन पाइप का उपयोग किया गया था. इस योजना के कारण झील के पानी की मात्रा को लगभग पचास प्रतिशत तक कम कर दिया गया था.


राज्य सरकार ने इस तबाही को प्राकृतिक आपदा घोषित कर दिया है. बचाव कार्य चल रहे हैं. त्रासदी के कारण भी तलाशे जा रहे हैं. इन सबके बीच सबसे आवश्यक कदम पर्यावरण संरक्षण को लेकर उठाने सम्बन्धी है. इसके साथ-साथ संवेदनशील क्षेत्रों में हिमनद झीलों की वृद्धि और स्थिरता पर नज़र रखने के लिये एक व्यापक निगरानी प्रणाली की स्थापना करना भी आवश्यक है. उपग्रह, ड्रोन आदि के द्वारा इन  झीलों की स्थिति का, उनकी जल मात्रा का नियमित आकलन किया जाना चाहिए. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, बाढ़ सुरक्षा उपायों, सुरक्षात्मक अवरोधों, जनजागरूकता, निचले प्रवाह क्षेत्रों में निकासी प्रक्रियाओं, सुरक्षा उपायों को मजबूत किया जाये. ऐसी घटनाओं से सबक लिया जाये न कि महज एक हादसा मानकर भुला दिया जाये.

 


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