मोटे अनाज को पुनर्स्थापित करने का समय

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट में मोटा अनाज के सम्बन्ध में कहा गया, ‘मोटे अनाज को लेकर श्रीअन्न योजना की शुरुआत की जाएगी. भारत में मोटा अनाज खाने की परम्परा रही है, यह इंसान को सेहतमंद रखता है. भारत यही परम्परा अब दुनिया तक पहुँचाना चाहता है. मोटे अनाज को श्रीअन्न नाम दिया गया है.’ श्रीअन्न योजना के अंतर्गत भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद को एक उत्कृष्ट केन्द्र के रूप में विकसित किया जाएगा, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के मोटे अनाज को स्थापित करेगा. ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू मोटे अनाज की आठ फसलें हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मोटा अनाज पसंद है. उनके द्वारा देश की हर थाली में इसकी उपस्थिति के लिए वर्ष 2018 में खास अभियान चलाया गया. इसे लेकर भारत की तरफ से संयुक्त राष्ट्र संघ में एक प्रस्ताव रखा गया. इस प्रस्ताव पर 72 देशों के समर्थन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया. संयुक्त राष्ट्र संघ और भारत की इस भागेदारी का उद्देश्य मोटे अनाज को पुनः मुख्यधारा में लाना है.


पिछले वर्ष दिसम्बर माह में इटली की राजधानी रोम में अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष - 2023 के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष सन्देश भेजा, ‘भारत मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित करेगा. देश में पोषक तत्वों से भरपूर ऐसे अनाजों के सेवन के लिए लोगों में जागरूकता लाने के लिए खास अभियान भी चलाया जाएगा.’ उनके भेजे गए सन्देश को अमल में भी लाया गया. उसी माह संसद परिसर में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने दोपहर का भोज आयोजित किया. इसमें देश के उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसदों और अन्य नेताओं ने मोटे अनाज का स्वाद लिया. सरकार की पहल पर ही संसद की कैंटीन में मोटे अनाज से बने व्यंजनों की शुरुआत हुई. यहाँ देश के विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध मोटे अनाज से बने व्यंजन को खाने की सूची में शामिल किया गया है. दिसम्बर माह में ही देश के विदेशमंत्री एस. जयशंकर द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस सहित यूएन सुरक्षा परिषद के सदस्यों को मोटे अनाज के भोजन हेतु आमंत्रित किया गया था. इतना ही नहीं, इस साल भारत में आयोजित होने वाले जी-20 कार्यक्रम में मोटे अनाज से बने पकवानों को विदेशी मेहमानों और वैश्विक नेताओं के सामने पेश किया जाएगा.




प्रधानमंत्री की तरफ से मोटा अनाज को प्रोत्साहित करने का काम अकारण नहीं किया गया है. इसके अनेकानेक लाभ भी हैं. मोटा अनाज को पोषक तत्वों का भंडार माना जाता है. बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि से भरपूर इन अनाजों को सुपरफूड भी कहा जाता है. गेहूं और धान की फसलों के मुकाबले इसमें सॉल्युबल फाइबर, कैल्शियम और आयरन की मात्रा अधिक होती है. इसके सेवन से अनेक तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है. आज बहुसंख्यक इंसान संक्रामक बीमारियों की चपेट में है. इस कारण लोगों का ध्यान संतुलित और पोषक आहार की तरफ जाने लगा है. इस मामले में मोटे अनाज का कोई मुकाबला नहीं है. इससे शरीर को उचित पोषण मिलता है जो आमतौर पर अन्य अनाजों से नहीं मिल पाता. रागी में प्रति सौ ग्राम में 364 मिलीग्राम कैल्शियम की मात्रा होती है. यह हड्डियों की मजबूती और डायबिटीज मरीजों के लिए लाभदायक है. बाजरे के प्रति सौ ग्राम में 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्व और 132 मिलीग्राम के करीब कैरोटीन होता है. कैरोटीन को आँखों की सेहत के लिए अच्छा माना जाता है. बढ़ती जनसंख्या की खाद्य जरूरतों को पूरा करने में ज्वार महत्त्वपूर्ण है. आसानी से पचने वाले जौ यानि ओट्स में अत्यधिक मात्रा में फाइबर होता है. इसके द्वारा ब्लड कोलेस्ट्रोल काबू में रहता है.


स्वास्थ्य सम्बन्धी इन कारणों के साथ-साथ मोटा अनाज के व्यापारिक लाभ भी हैं. भारत दुनिया के उन सबसे बड़े देशों में शामिल है जहाँ सबसे ज्यादा मोटा अनाज पैदा होता है. दुनियाभर में पैदा होने वाले मोटे अनाज में भारत का हिस्सा 41 प्रतिशत तक है. खाद्य एवं कृषि संगठन जो एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, के अनुसार वर्ष 2020 में मोटे अनाजों का विश्व उत्पादन 30.464 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) हुआ. अकेले भारत में 12.49 एमएमटी मोटे अनाज का उत्पादन हुआ. भारत में 2021-22 में 27 प्रतिशत की वृद्धि के साथ यह उत्पादन 15.92 एमएमटी हुआ. आँकड़ों के अनुसार 2021-22 में मोटे अनाजों का निर्यात करने में भारत ने 8.02 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है. वर्ष 2022 में भारत ने 159,332.16 मीट्रिक टन मोटे अनाज का निर्यात किया जबकि वर्ष 2021 में यह आँकड़ा 147,501.08 मीट्रिक टन था. भारत दुनिया के कई देशों को मोटे अनाज का निर्यात करता है. इसमें यूएई, नेपाल, सऊदी अरब, लीबिया, ओमान, मिस्र, ट्यूनीशिया, यमन, ब्रिटेन तथा अमेरिका शामिल हैं. निश्चित ही देश में मोटा अनाज उत्पादन में वृद्धि से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत को लाभ मिलेगा.


इसके साथ ही मोटा अनाज को प्रोत्साहित करके भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने का रास्ता भी दिखा रहा है. मोटे अनाज को पैदा करने के कई लाभ हैं. ये न्यूनतम उर्वरक के उपयोग के साथ पैदा होने वाली फसल है. कीटनाशकों का इस्तेमाल न किये जाने के कारण ये हानिकारक भी नहीं होते. मोटे अनाज के उत्पादन से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी आती है, जो पर्यावरण के अनुकूल है. यह पोषण से समझौता किए बिना जलवायु अनुकूलता को बढ़ावा देने वाला है. सतत आहार जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा होने से खाद्य और पोषण सुरक्षा मिलती है. मोटे अनाज ज़्यादा मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलते हैं, इस तरह ये जलवायु परिवर्तन नियंत्रण में अपना योगदान देते हैं. ज़्यादा तापमान और सीमित पानी की आपूर्ति में भी उत्पादन देने के कारण मोटे अनाज को जलवायु अनुकूल फसल की श्रेणी में रखा जाता है.


आज जिस तरह से संक्रामक रोग बढ़ रहे हैं, लोगों के जीवन में खानपान का ढंग बदलता जा रहा है, जलवायु परिवर्तन का संकट दिनों-दिन बढ़ रहा है, ऐसे में समय है मोटे अनाज के उपयोग को बढ़ावा देने का. इसके लिए इसके पोषण के गुणों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए ताकि लोगों की खाने-पीने की पसंद में बदलाव हो सके.

 


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