आईएनएस विक्रांत के रूप में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
डॉ. ऋचा सिंह राठौर
+++++++++++++++++++++++++++
जयेम सम युधि
स्पर्धा: (मैं उन्हें हराता
हूँ जो मुझसे लड़ने का दुस्साहस करते हैं) मोटो के साथ जब चलते-फिरते शहर जैसे एयरक्राफ्ट
कैरियर ने भारतीय नौसेना में आधिकारिक रूप से नियुक्ति प्राप्त की तो रक्षा क्षेत्र
में आत्मनिर्भरता का हमारा स्वप्न सत्य हुआ. 2 सितम्बर 2022 का दिन भारत के रक्षा परिदृश्य का अविस्मरणीय पल कहा
जायेगा जब भारत के प्रथम स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को भारतीय नौ सेना
में कमीशन किया गया. इस अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने उद्बोधन में
इसे भारतीय प्रतिभा, प्रभाव,
प्रतिबद्धता एवं परिश्रम का प्रतीक बताया.
यह भारत की वैश्विक सामरिक भूमिकाओं को पूरा करने और सागर तल पर शक्ति संतुलन को साधने
का मार्ग प्रशस्त करेगा. इस उपलब्धि के साथ ही भारत चुनिंदा देशों के उस क्लब में शामिल
हो गया जो स्वयं विमानवाहक पोत बनाने की क्षमता रखते हैं. अब हम अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के बाद छठे देश हैं जो डिज़ाइन, तकनीक और सबसे महत्वपूर्ण वॉरशिप ग्रेड स्टील के उत्पादन
की क्षमता रखते हैं.
आईएनएस विक्रांत के
निर्माण में 76 प्रतिशत सामान भारतीय
है. 15 वर्षो के प्रयास के बाद
कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) द्वारा इसे निर्मित किया गया. इसमें पहले 60:40 के अनुपात में निर्माण कार्य होना था किन्तु
सन 2005 में वॉरशिप ग्रेड स्टील
की आपूर्ति से रूस के पीछे हट जाने से इस परियोजना को बड़ा धक्का लगा. उस समय इस प्रकार
की स्टील का उत्पादन करने में भारत सक्षम नहीं था. ऐसे में निश्चित ही था कि बिना स्टील
की आपूर्ति के इस एयरक्राफ्ट कैरियर का निर्माण संभव नहीं. दो वर्षों तक इस परियोजना
के लंबित रहने के बाद यह तय किया गया कि भारत स्वयं इस श्रेणी की स्टील का निर्माण
करेगा. डीआरडीओ की डिफेंस मेटलर्जिकल रिसर्च लेबोरेटेरी और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया
लिमिटेड, जो सरकारी क्षेत्र की
सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कंपनी है, ने सयुंक्त रूप से इस पर कार्य आरंभ किया. यह प्रयास सफल रहा और एक उच्च दर्जे
की स्टील डीएमआर 249 का निर्माण
करने के साथ-साथ बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन भी किया गया. इस प्रकार न सिर्फ एक बड़ी
बाधा पार कर ली गई बल्कि वॉरशिप ग्रेड स्टील के आयात पर दशकों पुरानी निर्भरता भी खत्म
हो गई.
आईएनएस विक्रांत का
डिज़ाइन नौसेना की डिजाइन ब्यूरो और कई विदेशी फर्मों के साथ मिलकर तैयार किया गया है.
इसके फ्लाइट हैंडलिंग सिस्टम और स्टोबार तकनीक, एयरक्राफ्ट लिफ्ट, प्रपोल्शन सिस्टम, हैंगर डोर तथा एम्युनिशन लिफ्ट क्रमशः रूस, ब्रिटेन, इटली, स्वीडन तथा अमेरिका तकनीक पर हैं किन्तु इन सभी में लगे उपकरणों में 76 प्रतिशत से भी अधिक सामग्री भारत में तैयार
की गई है. अपनी विशालता, यौद्धिक
क्षमताओं और शक्ति की दृष्टि से यह अनूठा है. यह न सिर्फ भारतीय नौसेना की सर्वाधिक
शक्तिशाली युद्ध मशीन है अपितु हिन्द महासागर में भारत को ब्लू बर्ड बनाने की क्षमता
भी रखता है. 1500 किमी की मारक
क्षमता और 15,000 किमी सेलिंग रेंज
के साथ यह एक बार ईंधन भर कर पूरे भारत के दो चक्कर लगा सकता है. विक्रांत का विशाल
आकार उसकी सामरिकी को आक्रामक बनाता है. 53 एकड़ फैलाव, 18 मंज़िल की इमारत
के बराबर ऊँचाई और 40,000 टन वजन
के इस पोत में 2300 कम्पार्टमेंट
के साथ 1700 नाविक तैनात किए जा
सकते हैं. इसमें अस्पताल, पूल,
महिला अधिकारियों के लिए अलग केबिन दिए
गए हैं. इसके साथ ही 88 मेगावाट
बिजली का उत्पादन करने हेतु कई गैस टरबाइन्स लगी हैं. 30 फाइटर जेट्स और 32 मिसाइल की तैनाती के साथ यह 28 नॉट अर्थात 58 किमी प्रति घंटा से भी ज्यादा गति से चल सकता है. हाल-फिलहाल
इस पर मिग 29, कमोव-31 हैलीकॉप्टर एवं एमएच 60आर बहुपयोगी हैलीकॉप्टर तैनात किए गए हैं. 450 किमी मारक क्षमता वाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल
ब्रह्मोस इसकी एक बेहद शानदार सज्जा है. भारत में ही निर्मित तेजस और ध्रुव को भी कुछ
परिवर्तनों के साथ इस पर तैनात करने की योजना है. इसमें एके 630 रोटरी कैंनेंस लगी हैं तथा यह लेज़र गाइडेड मिसाइलों
के मार्ग को डायवर्ट करने की क्षमता से लैस है. पोत विध्वंसक मिसाइलों, सामरिक नौवहन प्रणाली से सज्जित विक्रांत अपने
नाम के अनुरूप ही दुस्साहसी सिद्ध होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है.
इसकी तैनाती पूर्वी
तट पर विशाखापट्टनम में की जाएगी. पश्चिमी तट पर आईएनएस विक्रमादित्य पहले से तैनात
है. जून 2023 तक यह पूरी तरह ऑपरेशनल
हो जाएगा. इसके बाद भारतीय नौसेना दो विमानवाहक पोतों के साथ हिन्द महासागर एवं इंडो-पैसिफिक
क्षेत्र में चीन से मिल रही चुनौतियों का मुँहतोड़ ज़वाब दे सकने में सक्षम है. यह समुद्र
में भारत और चीन के बीच शक्ति संतुलन स्थापित करेगा तथा भारत को समुद्री अड्डों द्वारा
घेरने की चीनी नीति स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स के विरुद्ध मजबूत वायु सर्वोच्चता प्रदान करेगा.
चीन सन 2050 तक विश्व की सबसे ताकतवर
नौसेना बनने के मिशन पर लगा हुआ है. इसके लिए वह हिन्द महासागर के तटीय देशों को ऋण
उपलब्ध करा, उनके बंदरगाहों के
पट्टे प्राप्त कर रहा है. उसका तीसरा विमानवाहक पोत फुजियान अपने मिशन पर सक्रिय है.
जबूती, हब्बनटोटा और ग्वादर में
चीन ने भारी निवेश कर अपने अड्डे विकसित किये हैं, जो भारत की व्यापारिक और सामरिक सुरक्षा के लिए चुनौती
है. भारत का शक्तिशाली नौसैनिक बेड़ा इस बहुध्रुवीय विश्व मे हमारी बहुआयामी भूमिकाओं
का मार्ग प्रशस्त करेगा. हिन्द महासागर के तटीय देशों और क्वाड समूह के साथ कूटनीतिक संबंध भी इस उपलब्धि से नए तरीके से तय होंगे.
आईएनएस विक्रांत के
नामकरण की कहानी भी बहुत रोचक है. बात दूसरे विश्व युद्ध के दौरान की है. ब्रिटेन की
रॉयल नेवी ने एचएमएस हरक्यूलिस नाम का एक विमानवाहक पोत तैयार किया. इसे सेना में शामिल
किए जाने की तैयारी चल रही थी, उसी बीच युद्ध खत्म हो गया. इसके बारह वर्ष बाद यानि सन 1957 में इस एचएमएस हरक्यूलिस को ब्रिटेन रॉयल नेवी
ने भारत को बेच दिया. 4 मार्च 1961
को यह पोत भारतीय नौसेना में शामिल हुआ.
भारतीय नौसेना में शामिल होने वाला यह पहला विमानवाहक पोत था. भारतीय नौसेना में शामिल
होने के बाद विकर्स-आर्मस्ट्रॉन्ग शिपयार्ड पर बने मैजेस्टिक क्लास के इस पोत का नाम
आईएनएस विक्रांत किया गया. 1971 के भारत-पाक युद्ध में आईएनएस विक्रांत पाकिस्तान की नौसेना के लिए बहुत बड़ी मुसीबत
साबित हुआ था. इस युद्ध में शानदार भूमिका निभाने वाले आईएनएस विक्रांत को पुनः इसी
नाम के साथ 25 वर्षों बाद 2
सितम्बर 2022 को वापस लाया गया है. आशा ही नहीं विश्वास है कि यह रक्षा
क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और भारतीय कौशल का प्रतीक बनकर हमारी सेनाओं को नीले समुद्र
और उसके आकाश पर वर्चस्वता प्रदान करेगा. भारतीय नौसेना को नीले समुद्रों की रानी बनायेगा.
Comments
Post a Comment