उपलब्धियों भरे बदलाव की यात्रा

जिस देश का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है, उसी देश की महज 75 वर्ष की यात्रा का जश्न बड़े जोर-शोर से मनाया जाना अपने आपमें अजब लगता है. इसके बाद भी इस अजब से लगने वाली यात्रा की कहानी को याद रखना भी आवश्यक है. ऐसा इसलिए क्योंकि गौरवशाली परम्परा, संस्कृति, सभ्यता होने के बाद भी देश सैकड़ों वर्षों तक गुलामी में रहने का कलंक आज तक ढो रहा है. आजादी के जश्न के द्वारा इस गुलामी भरे दंश को भुलाने का प्रयास किया जाता है या फिर वर्तमान पीढ़ी को एक सबक सिखाने की कोशिश होती है, ये किसी और विमर्श का विषय हो सकते हैं. वर्तमान समय वाकई गौरव करने का इसलिए भी है क्योंकि वैश्विक पटल से अनेकानेक सभ्यताएँ लुप्त हो गईं किन्तु भारतीय संस्कृति, सभ्यता तमाम सारी चोटों, आघातों को सहने के बाद भी अपनी वैभवशाली गाथा को साथ लिए आगे ही बढ़ रही है. 


वर्तमान में हम सभी आज़ादी के अमृत महोत्सव आयोजन के द्वारा अपनी आज़ादी के 75 वर्षों की यात्रा का स्मरण कर रहे हैं. वर्तमान के सापेक्ष जब इसी कालखंड पर दृष्टि डालते हैं तो बहुत सारा सुखद एहसास रोम-रोम को पुलकित कर देता है. बावजूद बहुत सारी उपलब्धियों के आज भी बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो गुलामी के दिनों को, अंग्रेजों के शासन को सही ठहराते हैं. ऐसे तमाम लोगों के विचारों को जानने-सुनने के बाद सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि क्या वाकई देश ने पिछले 75 वर्षों में कुछ पाया नहीं है? क्या देश ने इस यात्रा के किसी तरह की कोई उपलब्धि हासिल नहीं की है? क्या इन 75 वर्षों में हमने जो पाया है वह अंग्रेजी शासन की अपेक्षा कमतर है?




ऐसे सवालों को उन्हीं के दिमाग में छोड़ते हुए आगे बढ़ते हैं. विगत 75 वर्षों की उपलब्धियों, अनुपलब्धियों को यदि समग्र रूप में देखा जाये तो हम लोगों को निराशा नहीं होगी. कृषिप्रधान देश कहे जाने के बाद भी आज देश का आर्थिक ढाँचा मात्र कृषि आधारित नहीं है. जिस समय देश आज़ाद हुआ, उस समय देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह कृषि पर निर्भर थी और इसकी हिस्सेदारी 53.7 प्रतिशत थी. आज यह महज 18.8 प्रतिशत रह गई हो मगर इसके सापेक्ष अन्य क्षेत्रों ने अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की है. वर्तमान में उत्पादन क्षेत्र की हिस्सेदारी 26.9 प्रतिशत, सर्विस सेक्टर का भाग 54.3 प्रतिशत है. जीडीपी में व्यापार की हिस्सेदारी भी विगत वर्षों में बढ़ी है. वर्तमान में इसकी हिस्सेदारी 36.5 प्रतिशत हो चुकी है.


शिक्षा किसी भी समाज के विकास हेतु अत्यावश्यक अंग है. इसके बिना उन्नति, विकास की कल्पना करना संभव नहीं. नालंदा, तक्षशिला जैसे शैक्षणिक संस्थानों के नष्ट कर दिए जाने के बाद ऐसा महसूस हो रहा था कि शायद देश का शैक्षणिक विकास बहुत देर में हो. इस आशंका को विगत वर्षों की यात्रा में गलत सिद्ध किया गया है. प्राथमिक क्षेत्र से लेकर उच्च शिक्षा और शोध क्षेत्र तक देश में पर्याप्त विकास हुआ है. आज़ादी के समय देश में साक्षरता दर लगभग 18.3 प्रतिशत थी जो वर्तमान में लगभग 78 प्रतिशत है. चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में 1950 में देश में केवल 28 मेडिकल कॉलेज थे. आज यदि मेडिकल कॉलेज की संख्या निकाली जाये तो पूरे देश में 612 मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें 322 सरकारी और 290 निजी हैं. क्या इसे विकास या उपलब्धियों के रूप में नहीं देखा जायेगा? इसके अलावा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबन्ध संस्थान, कृषि संस्थान, उच्च शैक्षणिक संस्थानों ने भी संख्यात्मक, गुणात्मक रूप में पर्याप्त विकास किया है.


यातायात क्षेत्र को भी उपलब्धियों की दृष्टि से नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. हाँ, यहाँ एक बात स्मरणीय है कि इस क्षेत्र में विकास गति धीमी अवश्य रही मगर निरंतर विकास पथ पर यह क्षेत्र अग्रसर रहा. सड़कें हों या रेलमार्ग सभी में लगातार विकास होता रहा. देश में 3.3 मिलियन किमी सड़क नेटवर्क है जो विश्व में दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है. वर्तमान में एक अनुमान के अनुसार सड़क परिवहन द्वारा लगभग 65 प्रतिशत माल ढोया जा रहा है. इसी तरह यदि यात्री यातायात के आँकड़ों को देखें तो लगभग 87 प्रतिशत यात्री यातायात सड़कों द्वारा होता है. स्वर्णिम चतुर्भुज योजना और एक्सप्रेस वे का निर्माण भारतीय सड़क जाल के विकास की कहानी कहते हैं. सड़कों के साथ ही माल, यात्री यातायात की सहायक बनी रेलवे को यदि ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो भारतीय उप-महाद्वीप में प्रथम रेलगाड़ी महाराष्ट्र में मुम्बई और ठाणे के बीच लगभग 34 किमी लम्बे रेलमार्ग पर 16 अप्रैल 1853 को चलाई गई थी. आज सम्पूर्ण देश में रेलों का सघन जाल बिछा हुआ है. भारतीय रेल व्यवस्था के अन्तर्गत वर्तमान में सात हजार से अधिक रेलवे स्टेशन और  चौंसठ हजार किमी से अधिक लम्बा रेलमार्ग है. हजारों की संख्या में ही रेलवे इंजन, मालगाड़ियाँ, यात्री गाड़ियाँ रेलवे की संपत्ति के रूप में देश की धरोहर हैं. इनके माध्यम से रोज ही लाखों यात्री अपने गंतव्य तक की यात्रा करते हैं.


आज़ादी के बाद से लगातार अनेकानेक क्षेत्रों में विकास और बदलाव होते रहे हैं. अनेक नए-नए क्षेत्रों का उदय हुआ. तकनीक के मामले में जबरदस्त बदलाव देखने को मिले. किसी एक समय में दूरसंचार माध्यम की अपनी सीमितता थी वहीं आज इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. हमारे समाज में गिने-चुने लोगों के घरों में बेसिक फोन की सुविधा हुआ करती थी जो आज हर हाथ में मोबाइल के रूप में परिवर्तित हो गई है. इंटरनेट सुविधा, उसकी स्पीड के द्वारा न केवल धरती पर वरन अन्तरिक्ष क्षेत्र में भी व्यापक बदलाव देखने को मिले. ज्ञान-विज्ञान में भी देश में हुए बदलाव प्रत्येक नागरिक को गौरवान्वित कर सकते हैं. किसी समय में सेटेलाईट भेजे जाने के लिए हम दूसरे देशों की तकनीक पर निर्भर हुआ करते थे जबकि आज हमारे केंद्र अन्य देशों को यह सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं. परमाणु परीक्षण, टेस्ट ट्यूब बेबी, मंगल ग्रह का अभियान, बुलेट ट्रेन की तैयारी, ओलम्पिक में पदक जीतना, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 का हटना आदि वे स्थितियाँ हैं जिनको उपलब्धि के रूप में ही स्वीकारा जाता है.


कहते हैं न कि सफ़ेद पटल पर एक छोटा सा काला बिंदु भी बहुत दूर से चमकता है, कुछ ऐसा हाल इन उपलब्धियों का है, लोगों की मानसिकता का है. ये सच है कि तकनीकी विकास के दौर में हमारे यहाँ सामाजिक विकास में गिरावट देखने को मिली है. साक्षरता का स्तर बढ़ा है मगर स्त्री-पुरुष लिंगानुपात में अंतर भी बढ़ा है, महिलाओं-बच्चियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ बढ़ी हैं. एक तरफ हमें अन्तरिक्ष में अपने कदम रखे हैं तो दूसरी तरफ हमने अपनी ही धरती को जबरदस्त नुकसान पहुँचाया है. कृषि, खाद्यान्न के मामले में हम यदि आत्मनिर्भर होते जा रहे हैं तो हम जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं रख सके हैं. हमारा आर्थिक ढाँचा वैशिक स्थितियों को देखते हुए बहुत सुदृढ़ है मगर लगातार होते घोटालों को हम नहीं रोक सके हैं. मोबाइल, इंटरनेट क्रांति ने समूचे विश्व को एक ग्राम की तरह बना दिया है मगर आपसी भाईचारे-सौहार्द्र को हम मजबूत नहीं कर सके हैं.


ये कुछ पहलू हैं, और भी हैं, जिनके आधार पर बहुत सारे लोग देश की वास्तविक उपलब्धियों को विस्मृत कर जाते हैं. कतिपय राजनैतिक मूल्यों की गिरावट के कारण उनको अंग्रेजी शासन ज्यादा सुखद लगता है मगर वे भूल जाते हैं कि ये हमारी लोकतान्त्रिक शक्ति है कि यहाँ अंतिम पायदान के व्यक्ति तक को भी अवसर उपलब्ध हैं. ये और बात है कि संवैधानिक नियमों की आड़ में यहाँ एक निर्दलीय विधायक भी मुख्यमंत्री बन जाता है मगर यही संवैधानिक खूबसूरती भी है कि कोई ऑटो चलाने वाला, आदिवासी समाज से आने वाला, अत्यंत पिछड़ी पृष्ठभूमि से आने वाला भी जनप्रतिनिधि बन कर सदन में पहुँचता है, देश का प्रथम नागरिक बनता है. निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विगत 75 वर्षों की भदलाव भरी यात्रा सुखद रही है, उपलब्धियों भरी रही है. इस यात्रा में यदा-कदा मिलते झटकों को भी सफ़र का हिस्सा समझते हुए उनको स्वीकार करना होगा, उनका भी एहसास करते हुए आगे बढ़ना होगा.


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डॉ. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर 

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