डिजिटल विश्वविद्यालय की क्रांतिकारी अवधारणा

कोरोनाकाल में ऑनलाइन शिक्षा एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में सामने आई. इसके द्वारा बंद पड़ी व्यवस्था में शिक्षा सुचारू रूप से चलती रही. यद्यपि ऑफलाइन शिक्षा व्यवस्था जैसी सहजता विद्यार्थियों और शिक्षकों में नहीं दिखी तथापि अध्ययन-अध्यापन कार्य में रुकावट नहीं आई. वर्तमान बजट में प्रावधान किया गया कि देश में एक डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना की जायेगी. इस कदम को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से जोड़कर देखा जा रहा है क्योंकि शिक्षा नीति में ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा को प्रौद्योगिकी का न्यायसम्मत उपयोग सुनिश्चित करने वाला कदम बताया गया है. 


राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि संक्रामक रोगों और वैश्विक महामारियों में हाल ही में वृद्धि को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि जब भी और  जहाँ भी शिक्षा के पारंपरिक और विशेष साधन संभव न हों वहाँ हम गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के वैकल्पिक साधनों के साथ तैयार हों. इस नीति में डिजिटल प्रौद्योगिकी के उद्भव और स्कूल से लेकर उच्चतर शिक्षा तक सभी स्तरों पर शिक्षण अधिगम के लिए प्रौद्योगिकी के उभरते हुए महत्त्व को देखते हुए पायलट अध्ययन, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, ऑनलाइन शिक्षण, वर्चुअल लैब्स आदि महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की सिफारिश की गई है.




कोरोना महामारी के चलते समय-समय पर लगते लॉकडाउन में ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था लोगों के लिए अनजाना अथवा आश्चर्य भरा नहीं रह गया है. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के रूप में आज स्वयं, ई-पाठशाला, स्वयं-प्रभा, नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी, ई-ज्ञानकोष, वर्चुअल लैब्स आदि अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं, इनको भी एक तरह के डिजिटल विश्वविद्यालय के रूप में स्वीकारा जा सकता है. इसके अलावा मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज़, मूक्स, जो कि  वेब-आधारित मुफ्त दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम है, यह शिक्षा के क्षेत्र में भौगोलिक रूप से दूरस्थ क्षेत्रों के विद्यार्थियों की भागीदारी को सुनिश्चित करता है. इसके माध्यम से मुफ्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम में अध्ययन किया जा सकता है. यह प्लेटफॉर्म विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और चिकित्सा क्षेत्र में उन तमाम विद्यार्थियों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है, जो सीधे तौर पर किसी शैक्षिक संस्थान से या विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ हैं.


यदि प्रथम दृष्टया देखा जाये तो शिक्षा क्षेत्र के लिए डिजिटल विश्वविद्यालय एक लाभप्रद कदम सिद्ध होगा. इससे उन विद्यार्थियों को देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में अध्ययन का मौका मिलेगा जिनमें सीटों की सीमितता के कारण प्रवेश मिलना संभव नहीं होता है. इसके साथ-साथ दूरदराज क्षेत्रों के विद्यार्थियों के लिए भी अध्ययन कर पाना अब सहज हो जायेगा. इसमें भी सर्वाधिक लाभ उन बेटियों को मिल सकेगा जो अपनी पारिवारिक स्थिति, अपने परिवार की आर्थिक स्थिति और ग्रामीण अंचल में निवास करने के कारण से अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़ देती हैं. आवागमन की असुविधा, आर्थिक असमानता, पारिवारिक समस्याओं के चलते बहुत बड़ी संख्या में ड्रापआउट की समस्या शिक्षा क्षेत्र में देखने को मिलती है. इसके लिए सरकारों की तरफ से लगातार प्रयास किये जाते हैं मगर बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी है. डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना निश्चित ही इस क्षेत्र में भी सुधार की सम्भावना पैदा करती है.


ऑनलाइन अथवा डिजिटल शिक्षा के अपने लाभ हैं तो कुछ समस्याएँ भी हैं, जिनको न केवल जानना आवश्यक है वरन उनका समाधान भी आवश्यक है. कोरोनाकाल में ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा को देखकर यह आभास सभी को हो गया कि ऑनलाइन शिक्षा एक वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में भले स्वीकार ली जाये मगर ऑफलाइन शिक्षा व्यवस्था का स्थान यह नहीं ले सकती है. किसी भी संस्थान से अध्ययन करने के पीछे महज शिक्षा प्राप्त करना उद्देश्य नहीं होता है बल्कि इसके द्वारा विद्यार्थियों में आपस में सहयोग, समन्वय, टीम भावना आदि का विकास होता है. अनेकानेक स्थितियों, परिस्थितियों को सीखने, देखने का अवसर भी उनको मिलता है. यह तो एक ऐसी अवस्था है जिसका निदान किसी अन्य रूप में निकाला जा सकता है.


वर्तमन परिदृश्य में ऑनलाइन माध्यम में सबसे बड़ी समस्या संसाधन का अभाव है. हमारे समाज में बहुतायत जनसंख्या आज भी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए जद्दोजहद कर रही है. अभी भी बहुत से परिवार ऐसे हैं जहाँ कि स्मार्ट मोबाइल मिलना कठिन है. लैपटॉप अथवा अन्य संसाधनों का होना तो एक स्वप्न समान है. इस समस्या के साथ-साथ एक अन्य समस्या नेटवर्क सञ्चालन की है, जो न केवल ग्रामीण अंचलों में है बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी नेटवर्क कमजोर रहना आम बात है. यद्यपि सरकार के द्वारा तथा अन्य निजी कंपनियों द्वारा सुदूर अंचलों में भी इंटरनेट सुविधा पहुँचाने का दावा किया जाता है मगर उसकी स्पीड को लेकर, उसकी चौबीस घंटे उपलब्धता को लेकर, उसके निर्बाध बने रहने को लेकर संशय बना रहता है. ब्रॉडबैंड स्पीड का  विश्लेषण करने वाली एक कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट स्पीड की सूची के 138 देशों में से भारत का स्थान 115वाँ रहा है. यदि मोबाइल इंटरनेट स्पीड का आकलन किया जाये तो यह औसतन 14.17 एमबीपीएस रही. कल्पना ही की जा सकती है कि इतनी कम इंटरनेट स्पीड में ऑनलाइन विडियो कक्षाओं का लेना कितना सहज है.


इसमें कोई दो राय नहीं कि भविष्य की शिक्षा का आधार डिजिटल और ऑनलाइन ही है. डिजिटल विश्वविद्यालय निश्चित ही एक क्रांतिकारी अवधारणा के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी. वर्तमान परिस्थितियों में डिजिटल विश्वविद्यालय संस्थानों के लिए, विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित होगा किन्तु उसके पहले सरकार को इस क्षेत्र की समस्याओं को, संभावित खतरों को दूर करने का प्रयास करना होगा.

 

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