हिन्दी को किसी के साथ प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता ही नहीं - हिन्दी दिवस विशेष

विचार व्यक्त करती रेखा श्रीवास्तव
“हिन्दी को किसी के साथ प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता ही नहीं है. हिन्दी अपने आपमें इतनी सशक्त है कि हमारे देश की अन्य भाषाएँ उसके साथ समन्वय बनाकर ही चलती हैं. सभी भाषाओं का आपसी समन्वयवादी दृष्टिकोण ही भाषाओं के विकास में प्रमुख है.” उक्त विचार कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में दो दशक से अधिक समय तक अनुवाद के क्षेत्र में कार्य करने वाली रेखा श्रीवास्तव ने व्यक्त किये. जनपद के युवा गीतकार डॉ० अनुज भदौरिया के रामनगर स्थित आवास पर हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित विचार-गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए कानपुर से मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित रेखा श्रीवास्तव ने आगे कहा कि भाषाई विकास आपसी समन्वय के कारण सुनिश्चित होता है. भाषा सेतु नामक कार्यक्रम के द्वारा वे समूचे देश के भाषाई विद्वानों को जोड़ने और उनके साथ भाषाई समन्वय बनाने का काम विगत कुछ वर्षों से कर रही हैं. इस कार्य के परिणामस्वरूप कहा जा सकता है कि विश्व स्तर पर हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है. उन्होंने आगे बताया कि अमेरिका निवासी एक भारतीय विद्वान ने कानपुर में प्रकाशन का कार्य आरम्भ किया है. जिसमें सभी विषयों की हिन्दी भाषा की पुस्तकों का प्रकाशन, प्रसार किया जायेगा. निश्चित ही इससे हिन्दी भाषा के विकास को प्रोत्साहन मिलेगा. 

डॉ० रामस्वरूप खरे 
विचार-गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए स्थानीय दयानंद वैदिक महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य एवं युगकवि डॉ० रामस्वरूप खरे ने कहा कि भाषा का विकास उसके प्रचार-प्रसार से होता है. बहुत से अदालती शब्द आज चलन से बाहर हैं और उनकी जगह पर हिन्दी के शब्दों का प्रयोग बहुतायत में किया जा रहा है. इसी तरह से याद रखना होगा कि समूचे देश में हिन्दी विकास के लिए दक्षिण भारतीय लोगों ने भरपूर योगदान दिया है. आज राजनीति के चलते भले ही वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा का, राजभाषा का स्थान देने में उसका विरोध कर रहे हों मगर सत्यता यही है कि आज भी हिन्दी जहाँ है वहाँ किसी की दया से नहीं पहुंची है वरन उसने अपना स्थान खुद बनाया है.


डॉ० आदित्य कुमार 
सेंटर फॉर द रिसर्च स्टडी ऑफ सोसायटी (CRSS) के संरक्षक और राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ० आदित्य कुमार ने कहा कि भाषा का विकास प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेवारी है. ऐसा नहीं है कि हिन्दी भाषा का विकास हिन्दी साहित्य के लोगों की जिम्मेवारी है. सभी को अपनी-अपनी जिम्मेवारी समझनी होगी और भाषाई विकास के लिए आगे आना होगा. उन्होंने अपने छात्र जीवन को याद करते हुए बताया कि उस समय किस तरह अध्यापक बच्चों के भाषाई विकास के प्रति चिंतित रहता था. छात्र भी अपनी हिन्दी सुधारने के लिए लगातार कार्य करते थे. आज हिन्दी को जबरिया क्लिष्ट बनाकर उसे आम लोगों से दूर किया जा रहा है, यह एक तरह का षड्यंत्र ही है. इससे बचने की जरूरत है.

डॉ० आनंद खरे 
दयानंद वैदिक महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ० आनंद कुमार खरे का कहना था कि हिन्दी के विकास को ऐसे समझा जा सकता है कि व्यापारिक कम्पनियाँ आज हिन्दी सीखने पर जोर दे रही हैं. अपने उत्पाद का प्रचार हिन्दी में कर रही हैं, ये और बात है कि उनके उत्पाद में एक-दो शब्दों के अलावा सबकुछ अंग्रेजी में रहता है. इसी तरह से देखने वाली बात है कि फ़िल्मी कलाकार हिन्दी फिल्मों के द्वारा सफलता पाते हैं किन्तु जब भी मीडिया के सामने आते हैं, या फिर किसी कार्यक्रम में दिखाई देते हैं तो वहाँ अंग्रेजी बोलते नजर आते हैं. इस दोहरे रवैये ने ही हिन्दी को कमतर किया है.


डॉ० राकेश नारायण द्विवेदी 
गाँधी महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ० राकेश नारायण द्विवेदी का कहना था कि जिस तरह से हिन्दी भाषा की अनेकानेक बोलियों को भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने का कार्य चल रहा है वो असल में हिन्दी भाषा के प्रति दुराभाव की भावना है. इससे हिन्दी भाषा को बोलने वालों की संख्या में स्वतः कमी आएगी और इसके राजभाषा, राष्ट्रभाषा बनाये जाने के आन्दोलन के प्रति भी नकारात्मकता आएगी. सम्पूर्ण देश में भाषा के साथ-साथ बोलियों के जीवित बनाये रहने की आवश्यकता है. किसी समय देश की सोलह सौ से अधिक बोलियों में आज सात सौ के आसपास बोलियाँ जीवित बची हैं. हिन्दी के लिए ये स्थिति सोचनीय है. 

डॉ० राजेश पालीवाल 
डीवीकॉलेज के शिक्षक-शिक्षा विभाग के डॉ० राजेश पालीवाल ने कहा कि हमें अपने घर से ही हिन्दी के विकास का आरम्भ करना होगा. हम सभी को अपने बच्चों को अंग्रेजी शब्दावली के साथ-साथ हिन्दी की शब्दावली पर भी अधिक ध्यान देने की जरूरत है.






गणेश शंकर त्रिपाठी 
सामाजिक रूप से सक्रिय युवा विचारक गणेश शंकर त्रिपाठी ने कहा कि हम सभी दोहरे व्यवहार के चलते हिन्दी विकास में अपेक्षित सहयोग नहीं दे पा रहे हैं. बाहर हम लोग अपनी प्रतिष्ठा बनाये रहने के लिए बात-बात में अंग्रेजी के शब्द इस्तेमाल करते हैं और बात करते हैं हिन्दी के विकास की. इस तरह की दोहरी मानसिकता के चलते भाषा विकास संभव नहीं है. 





डॉ० अनुज भदौरिया 
युवा गीतकार और शताब्दी महाविद्यालय  के प्राचार्य डॉ० अनुज भदौरिया ने कहा कि आज दोहरे रवैये से बचने की जरूरत है. हमारी हिन्दी भाषा इतनी सक्षम है कि उसमें हजारो-हजार शब्द ऐसे है जिनका अपने आपमें पूर्ण अर्थ है. उसे किसी और सहारे की आवश्यकता नहीं है. देश-प्रदेश स्तर पर अनेक काव्य-मंचों की शोभा बन चुके पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’ ने हिन्दी के बढ़ते हुए रूप पर प्रकाश डाला और कहा कि आज लगभग सभी देशों में, मंचों से हिन्दी की बात की जाती है. सामान्यजन भले ही हिन्दी के प्रति बेरुखी दिखाए मगर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को मान्यता मिली है. इसके बाद भी हम हिन्दी भाषी हिन्दी के प्रति रूखा व्यवहार करने में लगे हैं. हिन्दी को लेकर होने वाली गलतियों के लिए हम आंदोलित नहीं होते हैं जबकि इसके उलट दक्षिण के लोग अपनी भाषा के प्रति जबरदस्त स्नेह रखते हैं. उसकी एक-एक कमी पर आंदोलित होने लगते हैं. 
पुष्पेन्द्र 'पुष्प'


डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर 
सेंटर फॉर द रिसर्च स्टडी ऑफ सोसायटी (CRSS) के संयोजक और युवा साहित्यकार डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा कि हिन्दी दिवस के प्रति ग्लानिभाव नहीं लाना चाहिए. ये उसी तरह से मनाया जाना चाहिए जैसे कि हम साल भर में एक बार अपने बच्चों का जन्मदिन मनाते हैं. हमें ध्यान रखने की आवश्यकता है कि हमारे बच्चे भले ही किसी माध्यम से शिक्षा ले रहे हों मगर वे अपने संस्कारों को न भूलें. हिन्दी को राजभाषा, राष्ट्रभाषा बनाये जाने सम्बन्धी सुझाव देते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर भारतीय शिक्षा व्यवस्था में त्रि-भाषा फार्मूला में एक भाषा अनिवार्य रूप से दक्षिण की हो. इससे उन्हें भी एहसास होगा कि उत्तर भारतीय उनकी भाषा को पढ़ने-सीखने का काम कर रहे हैं. इससे हिन्दी को सम्पूर्ण देश में और सशक्त बनाये जाने में मदद मिलेगी. 

सुभाष चंद्रा 
सेंटर फॉर द रिसर्च स्टडी ऑफ सोसायटी (CRSS) के सह-संयोजक सुभाष चंद्रा ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए हिन्दी के बारे में बताया कि वर्तमान में हिन्दी विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है मगर अभी ये स्थान बोलने वालों के कारण प्राप्त है. हिन्दी भाषा को अभी लेखन सम्बन्धी और ऊँचाइयाँ प्राप्त करनी हैं. सेंटर फॉर द रिसर्च स्टडी ऑफ सोसायटी (CRSS) के सचिव राघवेन्द्र द्विवेदी का कहना था कि जिस तरह विदेश के कई देशों में अपनी भाषा के प्रति अपार स्नेह दिखाया जाता है वैसा अपने देश में कम देखने को मिलता है. हम सभी बात-बात में ही कई-कई शब्द अंग्रेजी के प्रयोग करते हैं. उनकी त्रुटियों पर ध्यान नहीं देते हैं. इससे भी हिन्दी का अहित हो रहा है. विचार गोष्ठी में इसके अलावा इंदु सक्सेना, निशा सिंह, स्मिता, मनु राज, पराग, मुकुल, अक्षयांशी, श्रेया, अविजित सहित अनेक लोग उपस्थित थे. गोष्ठी का सञ्चालन राघवेन्द्र ने किया.  
राघवेन्द्र द्विवेदी 


Comments

  1. बहुत सारगर्भित रिपोर्ट । मुझे भी अपनी जन्मभूमि पर कर्मों की दृष्टि से एक ठोस आधार मिला । मैं अपने गुरु जी ,भाई और भतीजों के सानिंध्य से अभिभूत हुई । हृदय से आभारी हूँ ।

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  2. हिंदी भाषा को लेकर देश के अन्य भाषाविदों में व्याप्त भ्रांतियों और आशंकाओं को निर्मूल सिध्द करते हुए ये भाषा अपने आप ही सरसों के पुष्पों की भाँति लहलहा रही है।
    हम सभी हिंदी भाषियों का ये कर्तव्य बनता है कि समय समय पर इसके मूल में इसकी व्यापकता का नीर प्रवाहित करते रहें 👍👍

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  3. अरे जे तो हमाय खरे चाचाजी आंय 😊

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